श्यामसुन्दर कृष्ण राधा को बहुत परेशान करते हैं फिर भी कृष्णप्रेम की दिवानी राधा सखियों से कहतीं हैं कि हे सखी श्यामसलोने कृष्ण मेरे मन को बहुत भाता है। उसकी साँवली सूरत मेरे मन को मोह लेती है। मेरी गगरी फोड़ देता है, मेरी बाँह मरोड़ कर चुनरी खींच लेता है। हे सखी! मुझे अति दुर्लभ सुख प्राप्त होता है। उसकी बंशी की धुन मुझे बहुत प्रिय लगती है। मधुवन में जब वह रास रचाता है तो मैं सुधबुध खो कर सारी रात नाचती रहती हूँ। राधा और कृष्ण का यह अलौकिक प्रेम वाणी से परे है। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–
सखी री मोहे श्याम सलोने भायो ।
साँवलि सूरत मोहनि मूरत,
मन मोरे देखि लुभायो।
सखी री मोहे………..
जब मैं जाऊँ पनियाँ भरन को,
गगरी फोरि गिरायो।
बैयाँ मरोरि चुनर मोरि खींचत,
अति दुर्लभ सुख पायो।
सखी री मोहे………..
जब मैं जाऊँ कदम कि गछिया,
बंशी मधुर सुनायो।
मन को मोह लेत मोरे कान्हा,
कोकिल कंठ लजायो।
सखी री मोहे………..
मधुवन मोहे बुलाय सखी री,
मो संग रास रचायो।
थिरकत नाचत बीतत रैना,
तन की सुधि विसरायो।
सखी री मोहे………..
राधे श्याम का प्रेम अलौकिक,
काहु समझ नहिं पायो।
मैं ब्रह्मेश्वर मंदबुद्धि हूँ,
निज मुख कछु कर गायो।
सखी री मोहे………..
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र