मनुष्य प्रभु को यत्र तत्र खोजते चलता है पर अपने अंतःकरण में झाँक कर नहीं देखता फिर भगवान मिलेगें कैसे ? प्रभु तो मनुष्य के अंतः में हीं विराजमान रहते हैं। हृदय को पवित्र कर शुद्ध मन से अगर अपने अन्दर झाँक कर देखो तो प्रभु अवश्य मिलेगें । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—-
भजन चित लाइ करूँ जी प्रभु ,
फिर भी न दर्शन पाऊँ ।
मैने सुना था मंदिर में मिलोगे ,
मंदिर में भजन सुनाऊँ ।
प्रभु जी मैं तो फिर भी न दर्शन पाऊँ ।
भजन चित लाइ करूँ जी……….
मैने सुना था बागों में मिलोगे ,
बागों में भजन सुनाऊँ ।
प्रभु जी मैं तो फिर भी न दर्शन पाऊँ ।
भजन चित लाइ करूँ जी……….
मैने सुना था गलियों में मिलोगे ,
गलियों में झूम झूम गाऊँ ।
प्रभु जी मैं तो फिर भी न दर्शन पाऊँ ।
भजन चित लाइ करूँ जी……….
अंतः मे अपने जब झाँक कर देखा ,
प्रभु जी का दर्शन पाऊँ ।
प्रभु जी मैं तो देख देख नैना जुड़ाऊँ ।
भजन चित लाइ करूँ जी……….….
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र