भजन बिन बाणी ना शोभे भैया…………….. ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

जिस मुख से भजन न हो उस मुख से निकली हुई वाणी शोभा नहीं पाती। जिन आँखों से प्रभु का दर्शन न हो अथवा दर्शन की अभिलाषा न हो वे आँखें शोभा नहीं पातीं। जिन कानों से श्री हरि की कथा न सुनी जाय वे कान शोभा नहीं पाते। जिन हाथों से दान न हो वे हाथ शोभा नहीं पाते। जो चरण तिर्थ स्थानों में नहीं गए वे शोभा नहीं पाते। सुन्दर कर्म के बिना देह शोभा नहीं पाती। भक्ति के बिना ज्ञान शोभा नहीं पाता। राम भक्त के बिना कुल शोभा नहीं पाता। जिस घर पर अतिथि न पधारें वह घर शोभा नहीं पाता और जिस स्त्री के शरीर पर वस्त्र न हो वह स्त्री शोभा नहीं पाती। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–

भजन बिन बाणी ना शोभे भैया ।
हरि के दरश बिन नैन न शोभे ,
कथा श्रवन बिन कान न शोभे ,
दान बिन पाणी ना शोभे भैया ।
भजन बिन बाणी ना शोभे…….
तिरथ गए बिन चरन न शोभे ,
सुन्दर करम बिना देह न शोभे ,
भगति बिन ज्ञान ना शोभे भैया ।
भजन बिन बाणी ना शोभे…….
राम भगत बिना कुल नाहीं शोभे ,
अतिथि बिना घर कुटिया न शोभे ,
बसन बिन नारी ना शोभे भैया ।
भजन बिन बाणी ना शोभे…….

 

रचनाकार

  ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र