– विजय कुमार झा, वरिष्ठ पत्रकार।
देश के भीतर आज जो कुछ भी हो रहा है, उससे भारत की संप्रभुता खतरे में नजर आ रही है। पिछले 10 वर्षों में भारत की पहचान पूरी दुनिया में एक शक्तिशाली देश के रूप में उभरी है। लेकिन, इसके बावजूद भारत पड़ोसी मुल्कों के साथ-साथ आंतरिक दुश्मनों के खतरों से भी जूझ रहा है। इसी हफ्ते झारखंड के कई जिलों में तेजी से हो रहे जनसांख्यिकी परिवर्तन (डेमोग्राफिक बदलाव) पर गंभीर चिन्ता व्यक्त करते हुए झारखंड हाई कोर्ट ने केन्द्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। झारखंड हाई कोर्ट ने केन्द्र सरकार की ओर से इसे लेकर शपथ पत्र दाखिल नहीं किए जाने पर कड़ी टिप्पणी की। न्यायालय ने आईबी, यूआईएडीआई और बीएसएफ की ओर से अलग-अलग शपथ पत्र दाखिल किए जाने के लिए चार सप्ताह का समय मांगे जाने पर कड़ी नाराजगी जताते हुए मौखिक कहा कि ‘झारखंड में ट्राइबल की आबादी कम होती जा रही है और केन्द्र सरकार चुप है। झारखंड का निर्माण आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था। लगता है केन्द्र सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों के झारखंड में प्रवेश को रोकने को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है।’ कोर्ट ने मौखिक कहा कि बांग्लादेशी घुसपैठियों का मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा है, इसलिए सभी प्रतिवादियों को समय से अपना जवाब दाखिल करना होगा। न्यायालय ने बांग्लादेशी घुसपैठ जैसे संवेदनशील मुद्दे पर केन्द्र सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई।
इसी बीच शुक्रवार को एंटी टेररिस्ट स्क्वाड (एटीएस) की टीम ने झारखंड में 16 स्थानों पर छापामारी कर आतंकी संगठन अलकायदा इंडियन सबकॉन्टिनेंट (एक्यूआईएस) से जुड़े आठ संदिग्धों को गिरफ्तार किया। इसी दौरान रांची के मेडिका अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट के पद पर कार्यरत डॉ. इश्तियाक अहमद को भी गिरफ्तार किया गया, जिसके तार पाकिस्तान और अफगानिस्तान से जुड़े होने के सबूत मिले हैं। रांची से गिरफ्तार आतंकी संगठन अलकायदा मॉड्यूल के मास्टरमाइंड इश्तियाक के मोबाइल फोन से कई बड़े खुलासे हो रहे हैं। राज्य के रांची, हजारीबाग और लोहरदगा में हुई छापेमारी में संदिग्धों के ठिकाने से हथियार, लैपटॉप मोबाइल फोन और आपत्तिजनक दस्तावेज भी जब्त किये गए। इस गिरोह का उद्देश्य युवाओं को कट्टरपंथी बनाकर उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए तैयार करना है। केंद्रीय जांच एजेंसी की कार्रवाई में हुए खुलासे ने न सिर्फ झारखंड की, बल्कि देश की चिन्ता भी बढ़ा दी है।
दूसरी ओर, वोट बैंक की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों के नेता देश के बहुसंख्यक समुदाय को जातियों में बांटकर हिंदुओं की सामाजिक एकता को छिन्न-भिन्न करने पर आमादा हैं। संविधान में प्रदत्त ‘पंथ-निरपेक्षता’ के सिद्धांत को रद्दी की टोकरी में डालकर उसकी जगह ‘धर्म-निरपेक्षता’ की दुहाई देकर कांग्रेस ने आजादी के बाद लगातार छह दशकों से अधिक समय तक राज किया। यह वही कांग्रेस है, जिसने सत्ता की खातिर धर्म के नाम पर न सिर्फ भारत का विभाजन किया, बल्कि एक खास सम्प्रदाय को खुश रखने के लिए उसे अनैतिक सुविधाएं मुहैया करवाकर बहुसंख्यक समाज को हाशिये पर पहुंचाने की कोशिश की। अब लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी कांग्रेस की उन्हीं नीतियों को आगे बढ़ाने को लेकर देश में जातीय जनगणना करवाने के लिए हाय तौबा मचा रहे हैं। विडम्बना यह है कि कभी खुद को कांग्रेस का प्रबल विरोधी मानकर उसे गालियां देने वाले राजनीतिक दलों के नेता भी राहुल के सुर में सुर मिलाकर उनके पीछे-पीछे डफली बजा रहे हैं। इतना ही नहीं, कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव में फारूख अब्दुल्ला की उस नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन किया है, जिसके चुनाव घोषणा-पत्र में वहां फिर से अलग झंडे के साथ-साथ धारा 370 और आर्टिकल 35ए को वापस लाने के वादे किए गए हैं। इससे साफ जाहिर है कि कांग्रेस आज भी अलगाववाद को बढ़ावा देने के अपने पुराने एजेंडे पर कायम है।
अभी पूरे देश ने देखा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दलितों के आरक्षण में क्रीमीलेयर को अलग किये जाने का फैसला दिए जाने के खिलाफ कतिपय संगठनों ने किस तरह भारत बंद आंदोलन का सहारा लिया। ऐसे लोगों को शायद न तो सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का भय है और न वे अपने ही समाज के शोषित वर्ग को आगे बढ़ने का मौका देने के पक्षधर हैं। कुल मिलाकर, देश कई मुद्दों पर आंतरिक संकटों से जूझ रहा है। एक तरफ झारखंड सहित पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठ पर कड़ाई से रोक लगाने की दिशा में कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पा रही है तो दूसरी ओर भारत के अन्दर मौजूद राष्ट्र-विरोधी ताकतें देश में दहशत फैलाने की तैयारी में हैं। उधर, वोट बैंक की ओछी राजनीति करने वाले कांग्रेस सहित कई अन्य राजनीतिक दल देश के बहुसंख्यक समाज को जातियों में बांटकर अपना उल्लू सीधा करने पर तुले हैं। ये सारी परिस्थितियां बेहद चिंताजनक हैं। ऐसे में जहां केंद्र सरकार को कड़े फैसले लेने होंगे, वहीं देश के बहुसंख्यक समाज को भी यह सोचना होगा कि आखिर यह सब कब तक चलता रहेगा और देश के सभी नागरिकों में अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर राष्ट्र-प्रेम की भावना कब जागृत होगी? यह राष्ट्र की अस्मिता को बचाने का सवाल है, जिसका जवाब हमें ढ़ूंढ़ना ही होगा, क्योंकि देश के सामने अपनी संप्रभुता को बचाए रखना एक एक बड़ी चुनौती है।