प्रभु श्रीराम सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ जिस मार्ग से बन में जा रहे हैं उस मार्ग पर बसे गाँव के लोग प्रभु का दर्शन कर रहे हैं। सीता जी से बनवासी स्त्रियाँ कहती हैं कि हे सुन्दरी ये तुम्हारे साथ जो श्याम वदन वाले हैं शोभा के खान ये तुम्हारे कौन हैं ? बनवासी स्त्रियों की वाणी सुन कर सीता जी सकुचा जाती हैं। सुशीला स्त्री भला पति का नाम कैसे ले सकती है और कैसे कह सकती है कि ये हमारे पति हैं ? सीता जी ने लज्जा और संकोच के साथ बहुत सुन्दर पति का परिचय दिया और घूँघट की ओट से तिरछे नयन से इशारा कर के कहा कि ये जो साथ में गोरे वदन वाले हैं न ये मेरे छोटे देवर हैं। बनवासी स्त्रियाँ समझ गईं साथ में जो श्याम शरीर वाले हैं ये इनके पति हैं। इसी प्रसंग पर भोजपुरी में लिखी मेरी ये रचना प्रस्तुत है :—–
शुभवा श्यामल पुरुषवा तोहरो केइ लगिहें हो।
कोमल सुकुमार बदनियाँ, अँखिया रतनार।
शुभवा श्यामल पुरुषवा तोहरो…….
सुनत बचनियाँ सिया लाजे सकुचइली,
घुँघटा के ओट से इशारा उ कइली,
कइसे बताईं सजनी केइ लगिहें हो,
सजनी श्यामल पुरुषवा हमरो केइ लगिहें हो।
शुभवा श्यामल पुरुषवा तोहरो…….
गोरे बदनवाँ संगवाँ छोटका देवरवा,
नाम लखन ह हवें दशरथ कुमरवा,
खुद हीं समझ ल सजनी केइ लगिहें हो,
सजनी श्यामल पुरुषवा हमरो केइ लगिहें हो।
शुभवा श्यामल पुरुषवा तोहरो…….
शुभवा = सुहागन स्त्री
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र