एक बार नारद जी ने भगवान राम से कहा कि हे प्रभु वैसे तो आपके अनेक नाम हैं और सब एक से बढ़ कर एक हैं पर आपका राम नाम सभी नामों में श्रेष्ठ हो, यही वर दिजिए । प्रभु ने कहा एवमस्तु और तबसे राम नाम प्रभु के सब नामों में श्रेष्ठ हो गया । प्रस्तुत है इसी प्रसंग पर मेरी ये रचना विद्यापति के तर्ज पर :——
आगे माइ राम नाम सब नाम में आगर,
सुमिरत नर तरि जात ।
सुगा पढ़ावत गणिका तरि गई,
तरि गए केवँट निषाद ।
आगे माइ सुमिरत नाम अहिल्या तरि गई,
पति पुर गई हरषात ।
आगे माइ राम नाम सब…………..
नारद मुनि जेही गावत निश दिन,
जपत रहत दिन रात ।
आगे माइ सुमिरत नाम जटायू पा गए,
सुन्दर निर्मल गात ।
आगे माइ राम नाम सब……………
सुमिरत नाम अजामिल तरि गए,
तरि गए संत समाज ।
आगे माइ सुमिरत नाम सूर भी तरि गए,
तरि गए तुलसी दास ।
आगे माइ राम नाम सब………….
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र