प्रभु के दर्शन का प्यासा मन जब आर्त हो कर पुकारता है तो प्रभु उसको अवश्य दर्शन देते हैं और उसे संकट से उबारते हैं । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :–—
दरश बिनु आवत नाहीं चैन ।
बाट तकत मोरि अँखिया थकित भई ,
दूखन लागे नैन ।
दरश बिनु आवत……………
गज ने पुकारा दौड़े आए ,
द्रुपद सुता की चीर बढ़ाए ,
मैं भी पुकारूँ आजा प्रभू जी ,
तड़पत हूँ दिन रैन ।
दरश बिनु आवत……………
सुनत सुदामा नाम प्रभू जी ,
दौड़े महल के द्वार ,
लेइ सुदामा गले लगाए ,
बरसत झर झर नैन ।
दरश बिनु आवत……………
भक्त प्रहलाद की सुनि के पुकार ,
आए प्रभू जी खंभा फार ,
किस बिधि बिनती करौं प्रभू जी ,
मुख नहिं आवत बैन ।
दरश बिनु आवत……………
बालक ध्रुव की सुनी पुकार ,
अचल किन्हि मेरे सरकार ,
मैं भी पुकारूँ आजा प्रभू जी ,
देखि जुड़ावऊँ नैन ।
दरश बिनु आवत……………
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र