पत्रकारों की सुरक्षा: समय की पुकार, राष्ट्र की जिम्मेदारी

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा पुष्पेश।  

भारत में पत्रकारिता आज अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रही है। सच की आवाज़ को बुलंद करने और जनता को जागरूक करने वाले पत्रकारों पर लगातार हो रहे हमले और धमकियाँ लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बन चुके हैं। हाल के वर्षों में पत्रकारों को धमकाने, शारीरिक हिंसा का शिकार बनाने और हत्या तक करने के मामले बढ़े हैं। पत्रकारिता, जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानी जाती है, आज खुद की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रही है। ऐसे में, अब यह समय की मांग है कि राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कठोर कानून बनाए जाएं, जिससे पत्रकार अपनी जिम्मेदारी निडर होकर निभा सकें और देश का लोकतंत्र मजबूत हो सके।

भारत में पत्रकारों पर होने वाले हमले अब एक सामान्य घटना बन गई हैं। रिपोर्टिंग करते समय पत्रकारों को डराना, धमकाना, और हिंसा करना आम हो चुका है। इस स्थिति ने भारत को पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में विश्व के सबसे खतरनाक देशों में शामिल कर दिया है। हर साल कई पत्रकार अपनी जान गंवाते हैं या फिर शारीरिक या मानसिक हमलों का शिकार होते हैं। यह इसलिए होता है क्योंकि वे सच को उजागर करने की कोशिश कर रहे होते हैं। सरकार या समाज जो पत्रकारों की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने का प्रयास करता है, वह वास्तव में लोकतंत्र के खिलाफ काम कर रहा होता है।

महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार जैसे राज्यों में पत्रकारों पर हमले और धमकियों के कई मामले सामने आए हैं। महाराष्ट्र में हाल ही में पत्रकारों पर हिंसा या मीडिया संस्थानों की संपत्तियों को नुकसान पहुँचाने के मामले ने स्पष्ट किया है कि पत्रकारिता एक जोखिम भरा पेशा बन चुका है। पत्रकारों को एक ऐसा वातावरण मिलना चाहिए जहाँ वे निडर होकर काम कर सकें और सच्चाई को उजागर कर सकें।

इन राज्यों में एक आम पत्रकार स्थानीय नेताओं, विधायकों, सांसदों के खिलाफ रिपोर्टिंग करने से घबराता है। उसे हमेशा इस बात का डर रहता है कि कहीं देर रात उसके घर पर गुंडों का हमला न हो जाए या दिनदहाड़े उसे सड़क पर घेर लिया जाए। कई बार पत्रकारों को किसी गुट या राजनीतिक खेमे में शरण लेनी पड़ती है, जिससे वे निष्पक्षता खो देते हैं और दरबारी कवियों की तरह काम करने लगते हैं। इस प्रकार की परिस्थितियाँ न केवल पत्रकारिता बल्कि पूरे लोकतंत्र को नुकसान पहुँचाती हैं।

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर एक सख्त कानून का प्रस्ताव रखा, जो देश के बाकी हिस्सों के लिए एक आदर्श मॉडल हो सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने पत्रकारों के खिलाफ अभद्रता, धमकी या हिंसा करने पर कड़ी सजा का प्रावधान किया है। इसके तहत 50,000 रुपये तक का जुर्माना और तीन साल तक की जेल का प्रावधान रखा गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून में दोषियों को आसानी से जमानत नहीं दी जाएगी, जिससे इस कानून की सख्ती और भी स्पष्ट हो जाती है।

उत्तर प्रदेश सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है, लेकिन इसे पूरे देश में लागू करना बेहद जरूरी है। अगर इसे राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया जाता है, तो पत्रकारों को डराने-धमकाने की घटनाओं में कमी आएगी, और पत्रकार बिना किसी भय के स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग कर सकेंगे। इससे उन तत्वों को भी कड़ा संदेश जाएगा, जो पत्रकारों पर हमले करके सच को दबाने की कोशिश करते हैं।

पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मानी जाती है, जो न सिर्फ सरकार की नीतियों पर निगरानी रखता है, बल्कि नागरिकों को जागरूक करने और सशक्त बनाने का काम भी करता है। यदि पत्रकार स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर सकते, तो लोकतंत्र कमजोर हो जाएगा। पत्रकार वे लोग होते हैं, जो भ्रष्टाचार, सामाजिक अन्याय, और अपराधों को उजागर करके समाज में सुधार लाने का काम करते हैं। लेकिन अगर पत्रकारों की सुरक्षा नहीं होगी, तो यह कार्य बाधित होगा और अंततः जनता को सटीक और सत्य जानकारी से वंचित रहना पड़ेगा।

पत्रकारों को धमकाना या उन पर हमला करना केवल एक व्यक्ति या संगठन पर हमला नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र पर सीधा हमला है। यह आवश्यक है कि सरकारें इस बात को समझें और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाएँ। जब पत्रकार बिना किसी भय के रिपोर्टिंग करेंगे, तभी सच्चाई सामने आ सकेगी और लोकतंत्र अपने वास्तविक रूप में काम कर सकेगा।

उत्तर प्रदेश सरकार का कदम एक महत्वपूर्ण शुरुआत है, लेकिन इसे केवल एक राज्य तक सीमित रखना सही नहीं होगा। यह जरूरी है कि केंद्र सरकार भी इस दिशा में कदम उठाए और पूरे देश में पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक सख्त राष्ट्रीय कानून बनाए। इस कानून का उद्देश्य केवल पत्रकारों को शारीरिक सुरक्षा प्रदान करना नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें मानसिक रूप से भी सुरक्षित महसूस कराना चाहिए ताकि वे बिना किसी दबाव के अपना कार्य कर सकें।

देश के सभी राज्यों में पत्रकारों के खिलाफ हो रही हिंसा और धमकियों को देखते हुए, यह आवश्यक हो गया है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें मिलकर पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक ठोस और व्यापक कानून बनाएँ। मौजूदा कानून पत्रकारों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीं हैं। कई मामलों में हम देखते हैं कि पत्रकारों के खिलाफ हिंसा करने वालों को जल्दी ही जमानत मिल जाती है या वे सजा से बच निकलते हैं। इससे अपराधियों का मनोबल बढ़ता है और वे पत्रकारों के खिलाफ हिंसा जारी रखते हैं।

यह आवश्यक है कि मौजूदा कानूनों में सुधार किया जाए और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए सख्त प्रावधान बनाए जाएँ। अगर उत्तर प्रदेश की तरह पूरे देश में सख्त कानून लागू किए जाते हैं, तो न केवल पत्रकारिता के क्षेत्र में सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि लोकतंत्र भी मजबूत होगा। सरकार को इस दिशा में त्वरित और सशक्त कदम उठाने चाहिए, ताकि पत्रकारों को सुरक्षा मिल सके और वे स्वतंत्र रूप से अपना काम कर सकें।

भारत में पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना न केवल समय की मांग है, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए भी आवश्यक है। पत्रकारों पर हो रहे हमलों को देखते हुए, यह आवश्यक है कि राष्ट्रीय स्तर पर एक सख्त कानून बनाया जाए, जो पत्रकारों को सुरक्षा प्रदान करे और उन्हें बिना किसी डर के सच उजागर करने का मौका दे।

उत्तर प्रदेश में लागू किया गया कानून एक आदर्श कदम है, और इसे पूरे भारत में लागू करना अब समय की मांग है। इससे पत्रकारिता का पेशा न केवल सुरक्षित होगा, बल्कि पत्रकार भी बिना किसी भय के अपने कर्तव्यों का पालन कर सकेंगे। सरकार को यह समझना होगा कि पत्रकारिता को मजबूत करना, लोकतंत्र को मजबूत करना है। इसलिए, जितनी जल्दी इस तरह के कानून को राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाएगा, उतनी ही जल्दी भारत में पत्रकारिता को एक नया जीवन मिलेगा। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि देश का हर पत्रकार सुरक्षित और स्वतंत्र होकर अपनी जिम्मेदारी निभा सके।

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