सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
EVM ने फिर धोखा दे दिया कांग्रेसियों को। अपनी पैदाईश से वह कांग्रेसियों की दुश्मन रही है। मज़ाल है कि कभी उसने कांग्रेसियों का साथ दिया हो! अगर कभी कांग्रेस जीती भी तो राहुल की बदौलत, दूसरा कौन है यहाँ भारत में ? अब राहुल कोई आम या सेब के छतनार तो है नहीं कि मौसम में भर भर के फल देंगें। वो तो ताड़ हैं; पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर . ….सुना ही होगा। खैर, मौसम-बेमौसम दो-चार फल ही दे, पर है तो फलदार पेड़ ही न। हालाँकि कहा जाता है कि बस ताड़ी के मोह में किसान इसे आसपास रखता है वरना कब का उखाड़ फेंकता और उस स्थान पर कोई टैलेंटेड पेड़ लगा लेता। पर अगर राहुल मौसम बेमौसम दो-चार फल ही दे, तो वह ताड़ का पेड़ है, फलदार तो है, भले ही वह पार्टी के लिए पर्याप्त है न हो। क्या मात्र इसके लिए कांग्रेस अब राहुल पर भरोसा नहीं कर सकती है? कौन कहता है किसकी हिम्मत की कहे कांग्रेस को नए नेताओं और नीतियों की तलाश करनी होगी? देखिएगा, समय ही बताएगा कि पार्टी अपनी इस बड़ी चुनौती का सामना कैसे करती है।
हरियाणा और जम्मू कश्मीर के चुनावों के नतीजों ने फिर्र सिद्ध कर दिया है कि ताड़ के पेड़ पर गिनती के ही फल लगते हैं लग सकते हैं। भाई ये बहुत गलत बात है कि हम तो यहाँ पैदल चल-चल के अपने मतलब का पूरा देश नाप लिए और साथी लोग ऐसे मतलबी कि भर-भर के सारा एंटी-मोदी वोट लूट ले गए। कोई बड़ी कांग्रेसी इन्हें डांटती क्यों नहीं ? कहती क्यों नहीं कि “मेरा बाबू मेरा पप्पू अभी भी लल्ला है। तुमलोग उसे खिलाने ले जाते तो हो बार-बार भले पर उसका ख्याल भी रखा करो। मैं बार बार कहती हूँ कि मेरे लल्ला में राजनितिक समझ नहीं है, उसके साथ राजनीतिज्ञों जैसा व्यवहार नहीं किया करो, उसके साथ राजनीति नहीं किया करो। …..”
हालाँकि सच्चाई ये है कि कांग्रेस आजकल अभिशापित हो गई है। फिल्मों में हमने बहुत देखा है कि कैसे पूर्वजों ने कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया होता है या बहुत सारे पाप कर दिए होते हैं और उसका भुगतान भावी पीढ़ियों को आजीवन करना पड़ जाता है; संभवतः यहाँ भी ऐसे ही भूत जागृत हो गए हों। राहुल या उसके जैसों पर दोषारोपण करना ठीक नहीं।
दरहक़ीक़त, राहुल भोला है। राहुल सीधा-साधा है। उसे कुछ समझ नहीं आता। उसे जो बोलने को बोला जाता है बस वही बोलता है। आपने कई बार देखा होगा वह बिलकुल नासमझ की तरह बोल जाता है। दरअसल वह बालस्वभाव में भूल जाता है कि उसे क्या बोलने को बोला गया था। और आपने यह भी गौर किया होगा कि उसे जहाँ जाने को कहा जाता है; जिस रास्ते कहा जाता है बस उसी रास्ते जाता है। वह हमेश बायां रास्ता पकड़ कर चलता है। कोई कितना ही उकसाये मज़ाक उड़ाए वह अपना वामपंथ नहीं छोड़ता। ऐसे निरीह नासमझ और नाफिकरे पर दोषारोपण करना शर्मनाक कहा जाना चाहिए। जनता अपनी समझ देखे, दूसरी और राहुल की समझ देखे। कोई तुलना है ? फिर क्यों आप राहुल पर अपना वक़्त बर्बाद कर रहे हैं ? उसे अपने हिसाब से पलने बढ़ने दीजिये पनपने दीजिये। हर आदमी आपकी कल्पना पर नहीं उतर सकता। डार्विन ने भी कहा था कि हर सात पीढ़ियों के सेट में एक बहुत इन्टेलिजेंटली निखरता है और कुछ सीड्स स्पॉइल हो जाते हैं। कौन क्या बना यह तय करने वाले भला आप कौन ? जनता के बीच कोई गया है अगर तो जनता को ही तय करने दीजिये न !
हाँ आपके इस अफ़सोस में शामिल जरूर होऊंगा कि हँसता बस्ता घर खानदान कैसे बर्बाद हो रहा है या हो गया है। समय की मार है महोदय यह और कुछ नहीं। कहते है कि पिछले जनम का किया धरा इस जनम में भुगतना होता है। पर इस खानदान ने तो इस जनम में भी बड़े बड़े पाप किये हुए हैं, समय तो क्या जनता भी इसे नहीं बख्शना चाहती।
खैर, बीती सारी बिसार दे, आगे की सुध ले. … ! EVM पर कोई भरोसा रखे न रखे अपनी मिहनत पर तो भरोसा रख ही सकता है जैसे दूसरे रखते हैं ! एक ऐसा कोई हो जो दिमाग से पैदल होकर न चले बल्कि अपने हर कदम पर भरोसा कर सके ऐसे चले; जैसा कोई मिल जाये तो नैया पार उतर जाए कांग्रेस की। सीरियसली ! हाँ अब इसका मतलब ये भी नहीं कि राहुल न सही रेहान सही। क्या इन्होने तुम्हारी कोई लाल-फाइल बना रखी है ? इतना डरते क्यों हो ? !
और अभी तो यह भी मज़ेदार घट सकता है कुछ ही सप्ताह में, कि अपनी बचकानी ज़िद्द में अपने जद से बाहर निकल कर मात्र 6 रन बनाने वाले कैप्टन राहुल कही जम्मू कश्मीर में अब्दुल्ला साहेब की ताज़पोशी में हंगामा न कर बैठें ! यही नहीं अभी तो झारखण्ड के सोरेन साहेब को भी चौकन्ना रहना होगा कि कही EVM से ख़ौफ़ज़दा यह शख्श झारखण्ड में बना बनाया खेल न बिगाड़ दे ! सोरेन साहेब को याद तो होगा कि इसी कंग्रेस ने धोखा देते हुए कभी इनके पिताजी को तख़्त-विहीन कर दिया था। क्या वो खुद को समझा सकते हैं कि तब से अब में क्या बदला है ?
चलिए सोरेन बाबू समझदार है खुदमुख्तार हैं अपने निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं वो झारखण्ड को अपने बूते संभाल सकते हैं। बाकि, लल्ला का का कीजै ? ! कब चिल्लाने लगे कब बाल नोचने, कब आँख मार दे कब जबरन गले लगा ले और कब किसको मार बैठे। इसी से पीड़ित इससे कभी कोई शिकायत करने जाए तो लल्ला कुटिल मुस्कान बिखेर देता है बस। देश की नाक पर बैठी मक्खी को मारने के नाम पर यह कब देश पर तलवार चला दे तो भला इसे क्या कहा जा सकता है? पर चलिए अब स्वतः संज्ञान लेने का वक़्त आ गया है , कब तक मेरे साथ जिलेबी की तरह इधर-उधर घूमते रहिएगा। जिन्होंने मनो-टनो जिलेबिया बना राखी थीं वो सारी कि सारी जिलेबियाँ तो भाजपाई खा गए। और फिर मैं निराधार घुमा भी नहीं सकता। मुझे क्या राहुल समझ रखा है ?