शिव जी पार्वती जी के साथ अपने धाम कैलाश पर्वत पर कैसी शोभा पा रहे हैं, इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—-
श्री महादेव शिव अवढरदानी ,
शोभ रहें निज धाम ।
गौर बदन कर्पूर समाना ,
करुणा के शिव धाम ।
श्री महादेव शिव——
बाम भाग में उमा विराजत ,
अंक गौरि के लाल ।
श्री महादेव शिव——
जटा जूट शिव नैन विशाला ,
गले सर्प की माल ।
श्री महादेव शिव——
अंग भभूति कटी बाघम्बर ,
दूज चन्द्रमा भाल ।
श्री महादेव शिव——
कर डमरू त्रीशूल सुशोभित ,
जटा गंग की धार ।
श्री महादेव शिव——
अगणित सुर नर मुनिजन सेवत ,
शिव चरनन निष्काम ।
श्री महादेव शिव——
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र