रघुवंशी जी सुबह रुआँसे थे . खबरीलाल ने पूछ लिया – सर कोई मुसीबत आ गयी क्या ? बोले – धनतेरस गया , दिवाली भी बीत गयी . लेकिन धनतेरस फलित नहीं हुआ . खबरीलाल ने आश्चर्य से पूछ लिया – क्या मतलब ? रघुवंशी जी बोले – चुनाव के समय धनतेरस फलित तब होता जब कम से कम तरह लोगों के धन चुनाव खर्चे के लिए मिल जाते . और दिवाली का अर्थ यह होता कि जनता का दिवाला निकल जाता . भैया जी निकम्मे हैं , जनता का दिवाला तक नहीं निकाल पाए . ऐसे नेता देश और प्रान्त को क्या खाएंगे ? और भैया जी को पचाना भी नहीं आता . इतने सारे घोटाले चुनाव के समय बिलबिलाकर बाहर आ रहे हैं . अरे ऐसे खाना चाहिए कि खाते समय किसी को भनक न लगे . और एक बार खा लिया तो पचा भी लो .विधायिकी ऐसे होती है ? हम कितनी बार विधायक रहे , किसी को संदेह भी हुआ कि हम कितना माल हजम कर गए . खबरीलाल यह सुनकर खीखी खीखी हँस दिए और खिसक गए .
खबरीलाल अब भैया जी के पास गए . भैया जी भाषण देने की मनोदशा में थे . देखते ही शुरू हो गए – विधायक का अर्थ है जन प्रतिनिधि , जनता के प्रतिनिधि , जनता के स्वर . जनता चाहती है कि नियम – कानून ताक पर रखकर पहले उसका काम हो . जन प्रतिनिधि जनता का सेवक होता है . इसका गूढ़ अर्थ यह है कि चुनाव में विजयी होते ही अगले पाँच वर्षों तक जनता से सेवा ले . जनता का यह नैतिक कर्तव्य है कि नाना प्रकार से विधायक की सेवा करे , सरकार विधायक की सेवा करे . जमींदारी प्रथा को जीवित रखने का भार विधायक के कंधों पर होता है . उत्कृष्ट विधायज वह होता है जो सत्य , सत्यनिष्ठा , जनता की सेवा की अर्थी को स्वयं कंधा दे . लेकिन जब हम वोट माँगने जाते हैं तो बोलते एकदम उल्टा हैं . लेकिन इस बार लगता है कि जनता समझ गयी है . इसलिए विकास वाली बात करते ही नहीं हैं . सोचते हैं कि जाति वाला कार्ड खेल जाएँ . हमारी जाति के साठ प्रतिशत वोटर हैं . खबरीलाल ने टोक दिया – आप कब से इस जाति के हो गए ? आप तो उ जाति के हैं . भैया जी बोले – हमरा टाइटिल देखे हो . इसी के झाँसे में लोग हमको उसी जाति का समझने लगे हैं . पाँच इसी जाति के बड़े नेता को पैसा देकर बुलाएँगे , स्टार प्रचारक बना कर . तुम तब खेल देखना . रघुवंशी का खटिया खड़ा कर देंगे .सब जाति ने नाम पर मेरा वायरल फोटो भूल जाएगा .
यह सुनकर खबरीलाल हँस दिए और चले गए .