बालक राम आँगन में खेल रहे हैं, रात्रि का आगमन हो चुका है, चन्द्रमा उदय ले लिये हैं, चन्द्रमा की चान्दनी आँगन में फैली हुई है। बालक राम चन्द्रमा को देख कर उन्हें बुला रहे हैं। कहते हैं कि हे चन्दा मेरे आँगन में उतर आओ, मैं तुम्हारे साथ खेलूँगा, तुम्हें सोने के पलने में झुलाऊँगा, सोने की कटोरी में तुम्हें खिलाऊँगा, तुम्हारे अंग अंग में गहना पहनाऊँगा और तुम्हें सरयू के किनारे किनारे घुमाऊँगा। हे चन्दा मेरे आँगन में उतर आओ। इस प्रकार बाल सुलभ चपलता के साथ बालक राम चन्द्रमा को बुला रहे हैं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :–
चम चम चमके री चन्दनियाँ ,
दशरथ के अँगना ।
रघुबर चन्दा के बुलावत ,
चन्दा आव अँगना ।
चम चम चमके री………..
आव हो उतरि आव ,
हमरी अँगनवाँ हो ।
खेलबो तोहार संग ,
भरल अँगनवाँ हो ।
तोहके झुलैबो चन्दा ,
सोने पलना ।
रघुबर चन्दा के बुलावत,
चन्दा आव अँगना ।
चम चम चमके री………..
सोने कटोरी में ,
तोहके खिलैबो हो ।
सरयू के तीरे तीरे ,
तोहके घुमैबो हो ।
तोहके पहिनैबो ,
अंग अंग गहना ।
रघुबर चन्दा के बुलावत,
चन्दा आव अँगना ।
चम चम चमके री………..
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र