- Purnendu Sinha ‘Pushpesh’
“भईया बात भाजप की कहन सुनन को नाहिं।
जानत है सो कहत नहिं कहत सो जानत नाहिं।”
यह उक्ति भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के शीर्ष नेतृत्व नरेंद्र मोदी और अमित शाह की राजनीतिक शैली को अत्यंत सटीकता से चित्रित करती है। भाजपा की राजनीति की गहराई, अप्रत्याशितता और रणनीतिक चालें इस कदर जटिल हैं कि विपक्ष इन्हें समय पर समझने में विफल हो जाता है। जो इसे समझते हैं, वे अपनी सीमित क्षमता में इसे स्वीकारने से डरते हैं, जबकि जो इसे नहीं समझते, वे इस पर बेवजह आलोचनाएं करते रहते हैं।
महाराष्ट्र की राजनीति भाजपा की कुशल रणनीतियों का एक आदर्श उदाहरण है। 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद शिवसेना ने भाजपा से गठबंधन तोड़कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ अप्रत्याशित गठबंधन किया। इस घटनाक्रम ने भाजपा को अस्थायी झटका दिया, लेकिन मोदी-शाह की राजनीति की विशेषता यही है कि हर झटके को अवसर में बदला जाता है। भाजपा ने धैर्य के साथ परिस्थिति का अध्ययन किया और 2022 में शिवसेना के आंतरिक असंतोष को पहचानकर एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में पार्टी का विभाजन करवा दिया। नतीजतन, शिवसेना कमजोर हो गई और भाजपा ने महाराष्ट्र में अपनी सत्ता फिर से स्थापित कर ली।
भाजपा की इस सफलता के पीछे दो कारक प्रमुख थे: असंतोष को रणनीतिक रूप से साधना और विपक्षी खेमे में खलबली पैदा करना। यह भाजपा की “गुप्त राजनीति” का ही प्रमाण है कि विरोधी दल जब तक भाजपा की चालों को समझते हैं, तब तक भाजपा अपनी योजना को साकार कर चुकी होती है। 2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अप्रत्याशित सफलता हासिल की और विपक्ष को पूरी तरह चौंका दिया।
हाँ दूसरों के बहकावे में आकर पूर्व मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे थोड़ा असंतोष व्यक्त करते जरूर दिखे किन्तु अल्पकाल में ही महायुति फिर से पटरी पर आ गई , जिसका श्रेय किन्हें देना चाहिए समझा जा सकता है।
अन्य राज्यों में भी भाजपा की राजनीति इसी सटीकता और दूरदर्शिता का उदाहरण प्रस्तुत करती है। उत्तर प्रदेश इसका सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है। 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने “डबल इंजन सरकार” की अवधारणा को मजबूती से पेश किया। जातिगत समीकरणों को साधने के लिए भाजपा ने न केवल पिछड़े वर्गों को अपने साथ जोड़ा, बल्कि स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय एजेंडे से भी जोड़ने में सफलता पाई। योगी आदित्यनाथ जैसे सशक्त और लोकप्रिय नेता को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत कर भाजपा ने यह साबित किया कि उसका नेतृत्व निर्णय लेने में साहसिक और निष्पक्ष है।
भाजपा की रणनीतियों की एक और मिसाल पश्चिम बंगाल में देखने को मिली। 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने यहां 18 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया। यह जीत केवल एक चुनावी सफलता नहीं थी, बल्कि यह भाजपा की गहन जमीनी रणनीतियों और प्रभावी कार्यकर्ताओं के नेटवर्क का परिणाम थी। बंगाल में जहां वामपंथ और तृणमूल कांग्रेस का वर्चस्व था, वहां भाजपा ने खुद को एक सशक्त विकल्प के रूप में स्थापित कर दिया। हालाँकि अंतिम लोकसभा चुनाव में ममता के नेतृत्व में मुगलिया प्रभाव जरूर दिखा। 2024 लोकसभा में भाजपा की सेट 2019 की अपेक्षा 18 से घटकर सिर्फ 12 रह गई। फिर भी ध्यातव्य है कि 2014 में बीजेपी की कुल दो सीटें ही थीं।
उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी भाजपा ने राजनीति की नई परिभाषा गढ़ी। असम, त्रिपुरा और मणिपुर जैसे राज्यों में भाजपा ने क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर अपनी स्थिति को न केवल मजबूत किया, बल्कि स्थानीय और राष्ट्रीय राजनीति के बीच संतुलन साधने में भी सफलता पाई। भाजपा की यह रणनीति दर्शाती है कि वह राष्ट्रीय दृष्टिकोण के साथ क्षेत्रीय संवेदनाओं को भी भलीभांति समझती है।
राष्ट्रीय राजनीति में भाजपा का प्रभुत्व इसके साहसिक और दूरदर्शी निर्णयों का परिणाम है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का निर्णय न केवल ऐतिहासिक था, बल्कि यह भाजपा की दूरगामी सोच और राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रमाण भी था। इसी प्रकार, राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया को गति देना भाजपा की वैचारिक प्रतिबद्धता और अपने वादों को पूरा करने की क्षमता को दर्शाता है।
नोटबंदी और जीएसटी जैसे आर्थिक सुधारों ने भी यह दिखाया कि भाजपा कठिन और साहसिक निर्णय लेने से नहीं कतराती। इन निर्णयों ने जहां भाजपा के आलोचकों को एक आधार दिया, वहीं इसके समर्थकों को यह यकीन दिलाया कि पार्टी अपनी नीतियों में दृढ़ और निर्णयों में तेज है।
भाजपा की राजनीति की सबसे बड़ी ताकत है गोपनीयता और सही समय पर निर्णय लेने की क्षमता। मोदी और शाह की जोड़ी उन योजनाओं को सार्वजनिक करने से बचती है जो कार्यान्वयन से पहले विपक्ष को सतर्क कर सकती हैं। इस दृष्टिकोण का लाभ यह है कि उनकी हर रणनीति अप्रत्याशित रूप से सामने आती है और विपक्षी दलों को जवाब देने का समय ही नहीं मिलता।
भाजपा का कार्यकर्ता नेटवर्क भी उसकी रणनीतिक सफलता का अहम हिस्सा है। “पन्ना प्रमुख” जैसे नवाचारों ने यह सुनिश्चित किया है कि भाजपा की योजनाएं जमीनी स्तर पर प्रभावी तरीके से लागू हों। इसके अलावा, भाजपा का सोशल मीडिया अभियान और संवाद कौशल विपक्षी दलों से कहीं आगे है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भाजपा की इन रणनीतियों का सामना करने में बार-बार विफल साबित हुए हैं। कांग्रेस, जो कभी राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र थी, आज नेतृत्व संकट और आंतरिक कलह से जूझ रही है। इसके अलावा, क्षेत्रीय दलों की राजनीति अक्सर स्थानीय मुद्दों तक सीमित रह जाती है और वे राष्ट्रीय दृष्टिकोण विकसित करने में असफल रहते हैं।
विपक्षी गठबंधन भी भाजपा की रणनीतियों के सामने बौने साबित होते हैं। “इंडिया” गठबंधन जैसे प्रयासों ने यह तो दिखाया कि विपक्ष भाजपा को चुनौती देना चाहता है, लेकिन उनकी असंगति और कमजोर रणनीति ने भाजपा को और अधिक ताकतवर बना दिया। भाजपा की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वह न केवल खुद को प्रासंगिक बनाए रखती है, बल्कि विपक्ष की हर कमजोरी का लाभ उठाने में माहिर है।
नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने भारतीय राजनीति को एक नई दिशा दी है। उनकी दूरदर्शिता, साहसिकता और अप्रत्याशितता ने भाजपा को राष्ट्रीय राजनीति में अपराजेय बना दिया है। विपक्ष के पास न तो ऐसा नेतृत्व है और न ही ऐसी रणनीति जो भाजपा को टक्कर दे सके।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के पास न तो ऐसा नेतृत्व है और न ही वैसी रणनीतियां, और संभवतः ना वैसी राजनैतिक समझ ; जो भाजपा को टक्कर दे सकें। कांग्रेस की अंदरूनी कलह और ‘असक्षम नेतृत्व’ या कहें नेतृत्व संकट उसे और कमजोर बनाता है। वहीं, क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय दृष्टिकोण की कमी से जूझते हैं। एक लोकतांत्रिक देश में यह त्रासदी ही है कि वर्षों से विपक्षी गठबंधन अक्सर मुद्दों पर असंगत और कमजोर दिखता है….।
हालाँकि हालिया राजनीति में ममता बनर्जी एक ऐसी राजनीतिज्ञ जरूर हैं जो कम से कम अपने राज्य में वर्चस्व सा स्थापित कर रखा है; भले इस पकड़ का एकल कारण मुस्लिम और घुसपैठिया तुष्टिकरण हो। और 2024 चुनावों में हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखण्ड भी पश्चिम बंगाल के नक्शेकदम चलता दिखा है। लेकिन यहाँ उक्त तुष्टिकरण एकल कारण नहीं है। स्थानीय आदिवासियों पर हेमंत सोरेन की पकड़ भाजपा की अपेक्षा बहुत ज्यादा है।
फिर भी वर्तमान में, भारतीय राजनीति का यह परिदृश्य राष्टीय स्तर पर भाजपा को एक मजबूत और अपराजेय राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित करता है। मोदी और शाह की राजनीति को समझना और उसका मुकाबला करना विपक्ष के लिए फिलहाल असंभव दिखता है। भाजपा ने अपने निर्णयों और कार्यों से यह सिद्ध कर दिया है कि उसकी राजनीति को न केवल समझना मुश्किल है, बल्कि उसकी गहराई तक पहुंचना भी एक चुनौती है।