बंशी बाजि रही मधुवन में…….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

बंशी बाजि रही मधुवन में,
नाचत चातक मोर मराल ।
बंशी कि धुन सुनि निकलि राधिका,
खोजत नन्द गोपाल,
खोजत खोजत मिललें कन्हैया,
नैना हो गए चार ।
बंशी बाजि रही……………
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल,
गले बैजन्ती माल,
पीताम्बर की छवि है न्यारी,
मलय तिलक शोभे भाल ।
बंशी बाजि रही……………
हरि की शोभा बरनी न जाई,
शोभा बनल विशाल,
मोहन की छवि निरखि निरखि के,
राधा होत निहाल ।
बंशी बाजि रही…………..
बंशि कि धुन पर थिरकत राधा,
नाचत देइ देइ ताल,
नाचत नाचत रतिया गुजर गई,
हो गइ प्रातःकाल ।
बंशी बाजि रही……………

मराल = हंस

 

 

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र