प्रेम में है शक्ति अपार ….— डॉ. प्रशान्त करण

प्रेम करना ठठ्ठा नहीं है। हर किसी से नहीं निभता। कहते हैं, जो निभाता है या जिसका जैसे-तैसे निभ जाए — दोनों पक्षों की नींद उड़ जाती है। यह भी सत्य है कि प्रेम की लगन लगी नहीं कि शक्ति के स्रोत का झरना फूट पड़ता है।

बात तब की है जब रामलाल वर्षों से नल्ले थे। बटुए में फूटी कौड़ी नहीं थी। दाना-पानी के ही जुगाड़ में कब दिन कटा और कब रात कटी, उन्हें पता ही नहीं चलता था। तभी के दिनों में रवि बाबू ने अपने बनारसी स्वभाव के कारण रामलाल पर तरस खाकर उन्हें सेठ गोबर्धन दास के गल्ले में रखवा दिया। अब रामलाल के रोटी-दाल का जुगाड़ लग गया।

जठराग्नि शांत होते ही युवा रामलाल के हिय में प्रेम की ज्योति जगने की हलचल उठने लगी। उनकी प्रेम करने की बेचैन इच्छा की लहरें जोर मारने लगीं। प्रेम की डगर में समीप देखने से उन्हें इसकी संभावना सेठ जी के सटे निवास में ही मिल गई।

शारीरिक रूप-रंग के आकर्षक रामलाल को सेठ जी की एकलौती और अपेक्षाकृत कुरूप कन्या में उन्हें प्रेयसी के साथ माता लक्ष्मी के अपार धन की झलक मिली। फिर क्या था? अब रामलाल अपने प्रेम की अपार शक्ति के प्रदर्शन की दिशा और दशा उकेरने में भिड़ गए। कोई न कोई बहाना लगाकर वे उस सुकन्या की दृष्टि में बने रहने, सेवा करने और उसका तथा सेठ-सेठानी का विश्वास प्राप्त करने में जुट गए।

दो वर्षों की प्रेम की अपार शक्ति, श्रद्धा, भक्ति से अपने मूल उद्देश्य को सफलतापूर्वक छिपाते हुए आगे बढ़ निकले। प्रीत की ऐसी अपार शक्ति से गति तीव्रता पकड़ने लगी। इसी प्रयास का प्रतिफल था कि अच्छे स्वास्थ्य के स्वामी सेठ जी ने शीघ्र ही खाट पकड़ ली और वे रामलाल के ऊपर पूर्णतः निर्भर होने लगे।

रामलाल ने योजनाबद्ध उपक्रम से अब मुनीम जी को किनारे कर, सेठ जी के सारे कारोबार को देखने और हर व्यापारिक निर्णय पर अपना अधिपत्य स्थापित करना, साथ ही उन सब पर सेठ जी का नियंत्रण शून्य करने की जुगाड़ में चुपचाप सफल होने लगे।

तीन वर्षों की अपने प्रेम की अपार शक्ति की साधना के प्रथम चरण की समाप्ति पर ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर दी कि सेठ जी की सुकन्या ने स्वयं ही सेठ-सेठानी को रामलाल से विवाह करने का प्रस्ताव रख दिया। कालांतर में दोनों ने बड़े कठोर आग्रह से रामलाल को इसके लिए मनाया। दोनों के प्रेम की लता, सेठ जी के व्यवसाय और धन-संपदा की झाड़ पर तीव्रता से फैलकर छा चुकी थी।

प्रेम की अपार शक्ति क्या से क्या ही नहीं कराती! बस, ऐसा कहना अधिक उचित होगा कि क्या नहीं कराती! करने वाला प्रेम में अंधत्व को प्राप्त होकर अपनी समस्त ऊर्जा, मनोयोग, परिश्रम, धन और मानसिक कटिबद्धता से लगा रहता है। वहीं, जिसके प्रेम में यह उद्यम रचा जा रहा हो, वह उभय पक्ष के प्रेम की परीक्षा के कठिन से कठिन प्रश्न एक के बाद एक रखने के क्रम में व्यस्त हो जाता है।

मामला प्रेम के किसी स्वरूप का हो, चाहे भक्ति अथवा आध्यात्म से ही क्यों न जुड़ा हो।

— डॉ. प्रशान्त करण

Advertisements
Ad 7