भारत की आज़ादी: संघर्ष, बलिदान और चेतना की अनसुनी कहानियाँ

भारत की स्वतंत्रता की यात्रा केवल एक राजनीतिक बदलाव नहीं थी, बल्कि यह एक राष्ट्रीय जागरण, जनआंदोलन, और लाखों गुमनाम व ज्ञात नायकों के त्याग और बलिदान की गाथा है। यह एक ऐसा संघर्ष था, जो सदियों की गुलामी के बाद भारतवासियों की आत्मा को स्वतंत्रता की ओर ले गया। इस आलेख में हम भारत की आज़ादी की उन ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तित्वों पर विस्तृत प्रकाश डालेंगे, जिनकी गाथाएं आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेंगी।

  1. 1857 का पहला स्वतंत्रता संग्राम: 1857 का विद्रोह भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ पहली बार व्यापक स्तर पर किया गया सशस्त्र विद्रोह था। इसे ‘भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम’ कहा जाता है। यह विद्रोह मेरठ से शुरू हुआ जब भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। इसके मूल में अनेक कारण थे – सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक। विद्रोह की सबसे बड़ी चिनगारी बनी एनफील्ड राइफल की कारतूस, जिसे गाय और सूअर की चर्बी से लिप्त बताया गया था। मंगल पांडे जैसे वीर सिपाही इस विद्रोह के नायक बने। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, बहादुर शाह ज़फ़र, नाना साहब, तात्या टोपे जैसे नेताओं ने वीरता से अंग्रेजों का मुकाबला किया। यद्यपि यह विद्रोह सफल नहीं हो सका, लेकिन इसने स्वतंत्रता की चेतना को जन्म दिया और आगे की लड़ाइयों की नींव रखी।
  2. जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919): 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में जो हुआ वह ब्रिटिश शासन की क्रूरता की चरम सीमा थी। रॉलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्वक एकत्रित हुए लोगों पर जनरल डायर के आदेश से फायरिंग की गई, जिसमें सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे गए और हजारों घायल हुए। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया। महात्मा गांधी ने इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन का आह्वान किया। यह कांड स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक तीव्र बनाने में मील का पत्थर साबित हुआ।
  3. असहयोग आंदोलन (1920–1922): महात्मा गांधी द्वारा प्रारंभ किया गया असहयोग आंदोलन ब्रिटिश शासन को अहिंसा के बल पर झुकाने का पहला बड़ा प्रयास था। इसका उद्देश्य था सरकारी संस्थाओं, न्यायालयों, शिक्षा संस्थाओं और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करना। लोगों ने सरकारी पदों से इस्तीफा दिया, विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों का बहिष्कार किया और खादी पहनने को प्राथमिकता दी। यह आंदोलन व्यापक जनसमर्थन के बावजूद चौरी-चौरा कांड के बाद गांधी जी द्वारा स्थगित कर दिया गया, लेकिन इसने लोगों में राजनीतिक चेतना और आत्मनिर्भरता का भाव भर दिया।
  4. सविनय अवज्ञा आंदोलन और दांडी यात्रा (1930): 1930 में गांधी जी ने नमक कानून के विरोध में दांडी यात्रा का नेतृत्व किया। साबरमती आश्रम से दांडी तक की 240 मील की पदयात्रा ने ब्रिटिश कानून की अवज्ञा का प्रतीक बनकर देशभर में जनांदोलन को जन्म दिया। इस आंदोलन में लाखों लोगों ने भाग लिया और नमक बनाकर ब्रिटिश कानून को तोड़ा। सविनय अवज्ञा आंदोलन ने देशभर में अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिरोध की भावना को सशक्त किया और ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाकर रख दिया।
  5. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का बलिदान: भारत की आज़ादी की कहानी उन युवाओं के बिना अधूरी है जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने 1928 में लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए अंग्रेज अधिकारी सांडर्स की हत्या की। बाद में भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंककर अपने उद्देश्यों को स्पष्ट किया और बिना भागे गिरफ्तारी दी। इन युवाओं को फांसी दी गई, लेकिन उनके साहस और बलिदान ने भारतवासियों में क्रांति की चिंगारी भड़का दी। उनका नारा – “इंकलाब जिंदाबाद” आज भी हर भारतीय के मन में गूंजता है।
  6. 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन: द्वितीय विश्व युद्ध के समय गांधी जी ने ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ का नारा दिया। यह आंदोलन इतना तीव्र था कि ब्रिटिश सरकार को गंभीर संकट का सामना करना पड़ा। पूरे देश में गिरफ्तारियां, हिंसा और क्रांतिकारी गतिविधियां तेज़ हो गईं। इस आंदोलन की एक विशेषता यह थी कि गांधी जी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया और यह जनआंदोलन बन गया। लाखों लोगों ने जेल की यातनाएं सही लेकिन पीछे नहीं हटे।
  7. नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आज़ाद हिंद फौज: नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने के लिए एक अलग राह चुनी। उन्होंने जापान, जर्मनी जैसे देशों की मदद से आज़ाद हिंद फौज का गठन किया और ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया। उनकी फौज ने भारत की धरती पर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध किया। यद्यपि सैन्य रूप से वे सफल नहीं हो सके, लेकिन उनके प्रयासों ने भारतीय सेना और आम जनता में आज़ादी के प्रति नई चेतना पैदा की। नेताजी आज भी भारतीयों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
  8. काकोरी कांड (1925): काकोरी कांड भारत के क्रांतिकारी इतिहास की एक निर्णायक घटना थी। रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश ट्रेज़री से जा रही ट्रेन को लूटकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए आर्थिक संसाधन जुटाने का प्रयास किया। यह एक साहसी और सुनियोजित कार्रवाई थी। इस कांड के बाद ब्रिटिश सरकार ने कड़े दमनात्मक कदम उठाए और कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर फांसी दे दी। लेकिन इसने युवाओं में बलिदान की भावना और राष्ट्रभक्ति की लहर को और तेज़ कर दिया।
  9. रौलट एक्ट और इसके विरोध में सत्याग्रह (1919): ब्रिटिश सरकार द्वारा पारित रौलट एक्ट, जिसमें बिना मुकदमा चलाए किसी को भी गिरफ्तार किया जा सकता था, ने भारतीयों में रोष फैला दिया। गांधी जी ने इसके विरोध में सत्याग्रह का आह्वान किया। यह पहला राष्ट्रव्यापी अहिंसात्मक आंदोलन था, जिसने जनता को ब्रिटिश कानूनों की क्रूरता से परिचित कराया। इसी के विरोध में जलियांवाला बाग जैसी घटनाएं हुईं। रौलट एक्ट का विरोध स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में पहला संगठित अहिंसक प्रयास था।
  10. चंपारण सत्याग्रह (1917): बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती करने वाले किसानों पर ब्रिटिश नील उत्पादकों द्वारा अत्याचार किया जा रहा था। गांधी जी ने यहां जाकर किसानों के अधिकारों के लिए आंदोलन किया। यह उनका भारत में पहला जनांदोलन था और सत्याग्रह का पहला प्रयोग। इस आंदोलन की सफलता ने गांधी जी को राष्ट्रीय नेता बना दिया और लोगों में यह विश्वास उत्पन्न किया कि अहिंसा के बल पर भी अन्याय से लड़ा जा सकता है।
  11. बारडोली सत्याग्रह (1928): गुजरात के बारडोली क्षेत्र में जब ब्रिटिश सरकार ने कृषि कर में 30% वृद्धि की तो सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में किसानों ने कर भुगतान का बहिष्कार किया। यह आंदोलन अत्यंत अनुशासित और संगठित था, जिसमें एक भी हिंसात्मक घटना नहीं हुई। अंततः ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और कर वृद्धि को वापस लेना पड़ा। इससे सरदार पटेल को “सरदार” की उपाधि मिली और यह आंदोलन किसानों की ताकत और नेतृत्व की मिसाल बन गया।
  12. ‘नेहरू रिपोर्ट’ और साइमन कमीशन का बहिष्कार: 1928 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय संविधान की समीक्षा के लिए साइमन कमीशन नियुक्त किया, जिसमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था। पूरे देश में इसका विरोध हुआ और ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगे। लाला लाजपत राय ने लाहौर में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया, जहां अंग्रेजी लाठीचार्ज में उनकी मृत्यु हो गई। इसके विरोध में कांग्रेस ने ‘नेहरू रिपोर्ट’ प्रस्तुत की, जो भारत के लिए स्वशासन की मांग रखती थी। यह घटनाएं भारतीयों में आत्मनिर्भर संविधान के विचार को मजबूत करने वाली साबित हुईं।
  13. लाल-बाल-पाल और स्वदेशी आंदोलन: 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में लाल-बाल-पाल त्रयी (लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल) ने स्वदेशी आंदोलन चलाया। इसका उद्देश्य ब्रिटिश वस्त्रों और सामानों का बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना था। यह आंदोलन सामाजिक और आर्थिक रूप से ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला व्यापक जनआंदोलन बना। इसने राष्ट्रवादी विचारधारा को नई दिशा दी और जनमानस को एकजुट किया।
  14. 1947 में भारत की आज़ादी और विभाजन: अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, लेकिन इसके साथ ही देश का विभाजन हुआ और पाकिस्तान का निर्माण हुआ। यह विभाजन अत्यंत दर्दनाक और हिंसक था, जिसमें लाखों लोग मारे गए और करोड़ों विस्थापित हुए। इसके बावजूद भारत ने एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में अपने भविष्य की ओर कदम बढ़ाया।

भारत की स्वतंत्रता केवल राजनीतिक मुक्ति नहीं थी, बल्कि यह आत्मबल, जनशक्ति, और विचारों की जीत थी। इस यात्रा में असंख्य बलिदान, क्रांति, अहिंसा, और नैतिक संघर्ष शामिल हैं। इन गाथाओं को याद रखना और नई पीढ़ियों को बताना हमारा कर्तव्य है, ताकि स्वतंत्रता की कीमत का आभास बना रहे और हम अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने उत्तरदायित्वों का भी सम्मान करें।

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