स्वामी राजेशानंद का प्रवचन चल रहा था। स्वामी कह रहे थे—”सुनो भक्तों! कल रात ही स्वप्न में मुझे नारद जी एक प्रसंग सुना गए हैं। उस प्रसंग को सुनते ही मेरे पेट में भयंकर दर्द उठ रहा है। इसलिए वह प्रसंग मैं तुम भक्तजनों को सुना रहा हूँ। सुनाते ही मेरे उदर की पीड़ा शांत हो जाएगी। वह उदर पीड़ा तुम्हें मिलेगी, तुम्हारा तुम जानो।”
अनेक एकत्रित भक्तगण उठकर भागने लगे और प्रवचन कक्ष में भगदड़ मच गई। लेकिन स्वामी राजेशानंद के मार्शल तैनात थे और उन्होंने किसी भक्त को खिसकने नहीं दिया, बलपूर्वक बैठा दिया। स्वामी राजेशानंद ने अपने नयनों से उन मार्शलों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की और सभा के पुनः व्यवस्थित होते ही प्रसंग सुनाने लगे—
“जब ब्रह्मा सृष्टि रचने लगे तो भगवान विष्णु ने टाँग अड़ा दी। कहने लगे कि मैनुफैक्चरिंग डिपार्टमेंट महादेव ने आपको दिया है, तो मेंटेनेंस डिपार्टमेंट हमें दिया है। इसलिए मैनुफैक्चरिंग में आपकी मनमानी नहीं चलेगी। पेड़–पौधे, जीव–जंतु तक मैं चुप था, लेकिन मनुष्य के मैनुफैक्चरिंग में मेरे मेंटेनेंस डिपार्टमेंट से एनओसी लेनी पड़ेगी—जैसे विकास के कार्य में वन विभाग की।”
नतीजा यह हुआ कि मनुष्य निर्माण का काम ठप्प हो गया। नारद जी से यह समस्या देवाधिदेव महादेव ने सुन ली। महादेव ने ब्रह्मा जी और विष्णु जी दोनों को बैठक के लिए बुलाया। चमचागिरी का अवसर देख ब्रह्मा जी ने माता सरस्वती और विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को साथ ले लिया। मिलने पर माता सरस्वती और माता लक्ष्मी, माता पार्वती को एक किनारे ले जाकर उनकी प्रशंसा करने में व्यस्त हो गईं। महादेव ने पहले ही माता पार्वती से विमर्श कर लिया था।
ब्रह्मा जी और विष्णु जी जब औपचारिकता पूर्ण कर चुके, तो महादेव ने निर्णय तत्क्षण सुना दिया। बोले—”ब्रह्मा जी! आप मनुष्यों की आत्माओं के निर्माण तो अपनी इच्छा से कर लें, लेकिन कंसाइनमेंट धरती पर भेजने के पहले विष्णु जी के मेंटेनेंस विभाग में भेज दें। मनुष्य की सूक्ष्म आत्माओं को विष्णु जी शरीर प्रदान करेंगे और इसमें आपका विभाग बिना चूं–चपड़ किए सहयोग करेगा। फिर उनके माता–पिता का बंटवारा विष्णु जी का एकाधिकार होगा। किसी इमरजेंसी में मैं इंटरफेयर करूँगा। तभी मनुष्य योनि की आत्माएँ धरती पर भेजी जाएँगी।”
स्वामी राजेशानंद ने यहीं कथा रोककर सोमरस ग्रहण किया। फिर मुँह पोछकर आगे कहने लगे—
“भक्तजनों! सतयुग, त्रेता और द्वापर युगों तक सब व्यवस्थित रूप से चला। कलिकाल में, कलियुग के प्रथम चरण के मध्य से ही देवताओं, ऋषियों–मुनियों की बफशीट विष्णु जी के कार्यालय में आने लगी। यह सब पैरवी के पत्र होते। कोई देवता कहते कि सेठ गोबरधन दास ने मेरे मंदिर में एक संध्या भंडारा कराया है, एक पुत्र उनके यहाँ भेजा जाए। इसी प्रकार किसी बफशीट में लिखा होता—’अमुक भक्त ने मेरे नाम के जप की सौ मालाएँ जप ब्राह्मण से कराई हैं, उसके पौत्र के रूप में अमुक आत्मा को भेजा जाए।'”
यह सब देखकर देवताओं, ऋषि–मुनियों के सम्मान में विष्णु जी चुप रहे। फिर वे क्षीर सागर में जब शयन और आराम के लिए चले गए, तो ब्रह्मा जी को भी निद्रा सताने लगी और वे भी अपने शयन कक्ष में चले गए।
तभी ब्रह्मा जी और विष्णु जी दोनों के डिपार्टमेंट्स में कर्मचारियों ने खेल कर दिया। ब्रह्मा जी के कर्मचारी बफशीट भेज देते कि अमुक असुर ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए पूजा करवा ली है, अमुक भेड़िए की आत्मा को अमुक असुर के पुत्र–पुत्री के रूप में भेजें। विष्णु जी के कार्यालय में वही असुर बफशीट लेकर आता और साथ में स्वर्ण मुद्राएँ भी चुपके से उसके बीच रख देता। कर्मचारी विष्णु जी से बिना आज्ञा लिए तदनुसार उन आत्माओं को बताए गए गर्भ में चुपके से भेज देता।
कालांतर में धरती से यह शिकायत मिलने लगी कि वैसी आत्माओं द्वारा और उनसे सीख, उनकी संततियाँ आपस में माता–पिता को बाँटने लगी हैं। बँटने के बाद कोई पिता से नौकर और माता से नौकरानी का काम धड़ल्ले से लेने लगी हैं। विष्णु जी के निर्धारित कर्म उल्टे पड़ने लगे हैं।
विष्णु जी चिंता में पड़ गए। आनन–फानन में कर्मचारियों का स्थानांतरण किया गया। नए कर्मचारी भी स्वर्ण मुद्राओं के लोभ में पड़ जाते। विष्णु जी ने सर्कुलर जारी कर दिया कि ब्रह्मा जी के कार्यालय से आने वाले सभी बफशीट फाड़ कर फेंक दिए जाएँ और उन पर कोई विचार न हो। लेकिन जो आत्माएँ धरती पर जा चुकी हैं, वे नियमानुसार समय पूरा कर ही लौटें।
ब्रह्मा जी सर्कुलर देखते ही इसे अपना घोर अपमान बताने लगे। मामला देवाधिदेव महादेव के पास पहुँचा। पैरवी में माता सरस्वती को जाते देख विष्णु जी भी माता लक्ष्मी जी के साथ पहुँच गए। महादेव ध्यानमग्न थे। पार्वती माता भी अपनी प्रशंसा सुन–सुनकर जब पक गईं तो साफ कह दिया—”आप चारों यहीं ध्यानमग्न हो जाएँ। जब महादेव का ध्यान टूटेगा, तब मैं संकेत से आप चारों को जगा दूँगी।”
उधर विष्णु जी और ब्रह्मा जी के कर्मचारियों की बन आई और असुरों की चल निकली। इतना कहकर स्वामी राजेशानंद ने फिर से सोमरस का सेवन किया और मौन हो गए।
भक्तजन चिल्लाने लगे—”स्वामी, आगे क्या हुआ?”
स्वामी राजेशानंद ने मुस्काते हुए कहा—”महादेव का ध्यान टूटे, तब तो बतावें। नारद जी लगे हैं। आगे जब स्वप्न में फिर बताएंगे, तो मैं अगले दिन ही प्रवचन में बता दूँगा।”
इतना कहकर स्वामी राजेशानंद ने अपने तोंद पर हाथ फेर कर कहा—”अब पीड़ा जाती रही।”
भक्तजनों की उदर पीड़ा से ग्रसित भीड़ को मार्शलों ने उठा–उठाकर प्रवचन गृह से बाहर फेंक दिया।