भीड़ के पीछे मत भागिए, सोच-समझकर चुनिए अपना आदर्श

सम्पादकीय :  पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘    आज की दुनिया सोशल मीडिया की दुनिया है। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स…

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‘अतीत से सीखो, वर्तमान को जियो’-अतीत की भूलों से सबक लेकर बनेगा सशक्त भारत

– पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘ (स्वतंत्रता दिवस विशेष )  आज़ाद भारत की कहानी जितनी प्रेरक है, उतनी ही पेचीदा भी। जब 15 अगस्त 1947 को…

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आपातकाल: अतीत की छाया और वर्तमान की चेतावनी

Article by Purnendu Sinha Pushpesh भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 26 जून 1975 एक ऐसा दिन है जिसे अनदेखा करना भूल होगी और भुला देना…

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विकास और विस्थापन के बीच संतुलन की नई शुरुआत: बोकारो से झारखंड को मिल सकती है नई दिशा

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘  बोकारो स्टील सिटी में लंबे समय से विस्थापितों और स्थानीय निवासियों के बीच रोजगार, पुनर्वास और अधिकारों को लेकर…

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झारखंड के सरकारी अस्पतालों से क्यों कतराते हैं युवा डॉक्टर?

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘  झारखंड जैसे राज्य के लिए यह विडंबना ही कही जाएगी कि जहां एक ओर ग्रामीण और आदिवासी बहुल क्षेत्रों…

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जनजातीय चेतना और राष्ट्रनिर्माण में नागरिक आचरण की भूमिका

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘  जब हम राष्ट्र और समाज की रक्षा की बात करते हैं, तो हमारी कल्पना अक्सर सीमाओं पर तैनात जवानों,…

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बोकारो में बढ़ता अपराध: पुलिस के लिए चुनौती भी, अवसर भी

सम्पादकीय : पूर्णेंदु सिन्हा ‘पुष्पेश’ बोकारो में इन दिनों अपराध की तस्वीर कुछ ऐसी बनती जा रही है, जो न केवल पुलिस की सक्रियता की…

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बेरमो में कोयला माफिया का बोलबाला—जांच कमजोर या जानबूझकर आंख बंद?

Editorial by Purnendu Sinha ‘Pushpesh’ झारखंड के बेरमो क्षेत्र में कोयले के अवैध उत्खनन का सिलसिला एक बार फिर सुर्खियों में है। बीते कुछ महीनों…

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खोता बचपन, जागती व्यवस्था

Editorial by : Purnendu Sinha ‘Pushpesh’    झारखंड, एक आदिवासी बहुल राज्य, अपने सांस्कृतिक वैभव और प्राकृतिक संसाधनों के बावजूद आज देश में बच्चों की…

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बाल श्रम का ज़हर: आँकड़ों की चुप्पी, प्रशासन की मौनस्वीकार्यता

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’      भारत में बाल श्रम को लेकर जितनी संवेदनशील बातें होती हैं, ज़मीनी सच्चाई उससे उतनी ही क्रूर है।…

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