सम्पादकीय : पूर्णेन्दु पुष्पेश।
झारखंड की राजनीति में वर्तमान में जो कुछ भी हो रहा है, वह राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को गहराई से समझने की आवश्यकता पर जोर देता है। हाल ही में, झारखंड के स्वास्थ्य एवं खाद्य आपूर्ति मंत्री बन्ना गुप्ता ने चंपाई सोरेन पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसमें उन्होंने सोरेन को ‘विभीषण’ करार दिया है। बन्ना गुप्ता ने अपने पत्र में लिखा है, “झारखंड का इतिहास जब भी लिखा जाएगा, चंपाई सोरेन का नाम विभीषण के रूप में दर्ज होगा। जिस पार्टी और माटी ने उन्हें सबकुछ दिया, उसे ठुकराकर, अपने आत्मसम्मान को गिरवी रखकर वे सरकार को तोड़ने का कार्य कर रहे थे।”
इस बयान से स्पष्ट है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के भीतर गहरी खाई बन चुकी है। चंपाई सोरेन, जो एक समय झामुमो के प्रमुख नेता थे, अब पार्टी के भीतर अपनी स्थिति को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। उनके बीजेपी में शामिल होने की अटकलें जोरों पर हैं, और यह झारखंड की राजनीतिक गणित को पूरी तरह से बदल सकता है।
इस बीच, बीजेपी के वरिष्ठ नेता बाबूलाल मरांडी ने भी हेमंत सोरेन पर तीखा हमला बोला है। मरांडी का कहना है कि हेमंत सोरेन को अपने ही विधायकों पर भरोसा नहीं है, और उन्होंने आरोप लगाया कि सोरेन ने अपने विधायकों को होटल में बंद रखा था, ताकि वे उनके खिलाफ कोई कदम न उठा सकें। मरांडी ने कहा, “हेमंत सोरेन के करीबी अमित अग्रवाल, प्रेम प्रकाश, और पंकज मिश्रा जैसे लोग सत्ता के दलाल के रूप में जाने जाते हैं, और जब ऐसे लोग सत्ता का संचालन करेंगे, तो विधायकों का दुखी होना स्वाभाविक है।”
राजनीतिक बयानों में अक्सर सच और कल्पना का मेल होता है, और इसे पूरी तरह से सही या गलत मानना मुश्किल है। लेकिन, यह सच है कि अगर चंपाई सोरेन और उनकी टीम जेएमएम को छोड़ते हैं, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा को बड़ा नुकसान हो सकता है। वहीं, अगर वे बीजेपी में शामिल होते हैं, तो झारखंड बीजेपी के भीतर अंतरकलह की संभावना बढ़ सकती है। बीजेपी की हर दूसरी-तीसरी बैठक में अंतरकलह और विरोध के शोर की खबरें सामने आ रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चंपाई सोरेन और उनकी टीम बीजेपी में शामिल होकर अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा कर पाएंगे?
हालांकि, अगर चंपाई सोरेन और उनकी टीम एक नई पार्टी बनाकर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ते हैं, तो यह चुनाव बेहद रोचक हो सकता है। वर्तमान में जो भी हो रहा है, उसकी सच्चाई भविष्य के गर्भ में छिपी है। राजनीति में, कुछ भी निश्चित नहीं होता। आने वाले समय में झारखंड की राजनीति किस दिशा में जाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा। लेकिन एक बात स्पष्ट है, जो भी हो, यह घटनाक्रम झारखंड के राजनीतिक परिदृश्य को बदलने की क्षमता रखता है।