सम्पादकीय : पूर्णेन्दु पुष्पेश।
झारखंड की राजनीति में इन दिनों एक नई हलचल मची हुई है, जो चंपाई सोरेन और उनके बेटे बाबूलाल सोरेन के भाजपा में शामिल होने की खबरों से जुड़ी है। इस घटनाक्रम ने न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय राजनीतिक गलियारों में भी गहमागहमी पैदा कर दी है। भाजपा ने इस मौके का पूरी तरह से लाभ उठाने की योजना बनाई है, और चंपाई सोरेन की पार्टी में शामिल होने को लेकर प्रदेश भाजपा के नेताओं ने अभिनंदन और स्वागत समारोह का आयोजन करने की बात कही है। इस पूरे घटनाक्रम का प्रभाव झारखंड की राजनीति पर कितना गहरा होगा, यह समझना महत्वपूर्ण है।
चंपाई सोरेन के भाजपा में शामिल होने के बाद से भाजपा ने इस अवसर को भुनाने की पूरी तैयारी कर ली है। भाजपा की योजना है कि चंपाई सोरेन की मौजूदगी में कोल्हान से चुनावी कार्यक्रमों की शुरुआत की जाए, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल होंगे। यह चुनावी कार्यक्रम भाजपा के लिए एक बड़ी शुरुआत हो सकता है, क्योंकि चंपाई सोरेन की राजनीतिक स्थिति और प्रभाव को देखते हुए पार्टी के लिए यह एक बड़ा राजनीतिक लाभ हो सकता है।
चंपाई सोरेन और उनके बेटे बाबूलाल सोरेन की भाजपा से जुड़ने की संभावना ने राजनीतिक हलकों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या चंपाई सोरेन के अलावा उनके बेटे बाबूलाल को भी भाजपा से टिकट मिलेगा या नहीं। भाजपा की योजना के अनुसार, चंपाई सोरेन को उनकी प्रभावशाली सीटों पर चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है और उनके बेटे बाबूलाल को भी एक सुरक्षित सीट से चुनावी शुरुआत का अवसर दिया जा सकता है।
चंपाई सोरेन की चुनावी संभावनाओं पर सबसे अधिक चर्चा सरायकेला विधानसभा सीट को लेकर हो रही है। चंपाई सोरेन का सरायकेला में लंबे समय से प्रभाव रहा है। उन्होंने 2005 से 2019 तक लगातार चार बार इस सीट से जीत दर्ज की है। इसके अतिरिक्त, झारखंड गठन से पहले 1991 और 1995 में भी उन्होंने इस सीट पर जीत दर्ज कर झामुमो की झोली में डाला था। उनके प्रभावशाली कार्यकाल के कारण इस बार भी उनकी सरायकेला सीट पर वापसी की संभावना जताई जा रही है।
चंपाई सोरेन का सरायकेला सीट पर प्रभाव इतना गहरा है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के गणेश महाली को लगभग 15 हजार वोटों के अंतर से हराया था। यह उनकी सबसे बड़ी जीत थी। चंपाई सोरेन के वर्चस्व के बावजूद, इस बार उनकी सीट पर उनकी वापसी की संभावना को लेकर कोई औपचारिक बयान नहीं आया है, जो राजनीतिक दलों और उनके समर्थकों के लिए एक रहस्य बना हुआ है।
चंपाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन की चुनावी शुरुआत को लेकर भी चर्चा हो रही है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि बाबूलाल सोरेन को घाटशिला या पोटका विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। घाटशिला और पोटका दोनों ही सीटों पर संथाल और सोरेन वोटरों का प्रभाव अधिक है, जो बाबूलाल सोरेन के लिए फायदेमंद हो सकता है।
घाटशिला विधानसभा सीट की डेमोग्राफी पर नजर डालें तो चाणक्य सर्वे की रिपोर्ट बताती है कि यहां मुर्मू वोटरों की आबादी लगभग 7.2%, सोरेन 4.1%, और हेंब्रम 3.2% है। मौजूदा विधायक रामदास सोरेन भी इसी क्षेत्र से हैं और 2009 में यहां जीत हासिल कर चुके हैं। इसी प्रकार, पोटका विधानसभा सीट पर भी संथाली वोटरों का अच्छा प्रभाव है, जो बाबूलाल सोरेन के लिए एक संभावित अवसर प्रदान करता है।
चंपाई सोरेन के झामुमो से बगावत करने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कोल्हान क्षेत्र की स्थिति को लेकर चिंता बढ़ गई है। हेमंत सोरेन को अब बार-बार कोल्हान जाकर स्थिति पर नज़र रखना पड़ रहा है। चंपाई सोरेन की बगावत ने हेमंत सोरेन की रणनीति को चुनौती दी है और उन्हें कोल्हान क्षेत्र में अपने राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने की आवश्यकता पड़ रही है।
हेमंत सोरेन की चिंताओं की वजह यह भी है कि चंपाई सोरेन की बगावत के चलते क्षेत्र में सत्ता और विपक्ष दोनों की स्थिति पर असर पड़ सकता है। चंपाई सोरेन की भाजपा में शामिल होने से भाजपा को एक नया शक्ति स्रोत मिल सकता है, जो हेमंत सोरेन की पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। हेमंत सोरेन को इस स्थिति का सामना करने के लिए कोल्हान क्षेत्र में अपने राजनीतिक आधार को मजबूत करना पड़ेगा और साथ ही स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
चंपाई सोरेन और उनके बेटे बाबूलाल सोरेन की चुनावी संभावनाओं को लेकर झारखंड की राजनीति में चर्चाओं का सिलसिला जारी है। चंपाई सोरेन का सरायकेला सीट पर प्रभाव और बाबूलाल सोरेन की संभावित सीटें जैसे घाटशिला और पोटका, दोनों ही राजनीतिक परिदृश्य को बदल सकते हैं। भाजपा की रणनीति और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की चिंताओं के बीच, यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में चंपाई सोरेन और उनके बेटे की भूमिका कितनी निर्णायक साबित होती है।
चंपाई सोरेन की आगामी चुनावी योजना और उनकी भूमिका के बारे में जल्द ही स्पष्टता मिलेगी, जो झारखंड की राजनीति को नया मोड़ दे सकती है। भाजपा की इस रणनीति से न केवल चंपाई सोरेन की स्थिति को बल मिलेगा, बल्कि यह भी तय करेगा कि झारखंड की राजनीति का भविष्य किस दिशा में जाएगा।
इस समय, झारखंड की राजनीति पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। चंपाई सोरेन की भाजपा में शामिल होने और उनके बेटे बाबूलाल की चुनावी संभावनाओं के साथ, झारखंड में आगामी चुनावों की दिशा और राजनीतिक परिदृश्य पर नए समीकरण बन सकते हैं। यह घटनाक्रम न केवल राज्य की राजनीति को प्रभावित करेगा बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।