सम्पादकीय : पूर्णेन्दु पुष्पेश।
मैं अगर सच्चा हूँ तो मुझे अपने सच का प्रमाण देना ही होगा; यही आज का सच है। आप पर कोई आरोप लगता है तो आपको तत्क्षण उसका काट प्रस्तुत करना होगा । जरा सा देर हुई जान लो बहुत देर हो गई। जितने दिन तक बाजार में आप पर लगा आरोप घूमता रहेगा वह स्वतः स्थापित होता रहेगा। उसी प्रकार आप जिन पर भी आरोप लगा रहे हैं उसे भी आपको ही बाजार में सिद्ध करना होगा । वर्ण वह आरोप भी स्वतः ही झूठा साबित हो जायेगा। झारखण्ड बीजेपी की स्थिति इसी सिद्धांत के असर से मटियामेट हो रही है इन दिनों।
इंडी गठबंधन से बहुत लेना देना नहीं है झारखण्ड के आम आदिवासियों को। उनके लिए झारखण्ड का ईश्वर हेमंत सोरेन है , झामुमो है। हाँ कुछ बाहर से आये या लाये गए या भीतर के बरगलाये गए मुस्लिम जरूर झारखण्ड कांग्रेस के हिमायती है। हेमंत सोरेन को उनका भी पूरा साथ मिल रहा है यह हेमंत के लिए सोने पे सुहागा है। झारखण्ड में अस्थिरता स्थापित करने में वामपंथियों का टूल किट भी हेमंत को ही लाभ पहुंचा रहा है। प्रश्न उठने लगा है कि झारखण्ड बीजेपी के साथ अबकी बार कितने लोग है ? यही नहीं , शहरी भाजपाइयों का भी दिल धड़कना शुरू हो गया है , इसका श्रेय कौन लेगा ? झारखण्ड बीजेपी का बड़े पैमाने पर अंदरूनी कलह , झारखण्ड बीजेपी के निचले तबके के दायित्वधारी और कार्यकर्त्ता ? कहते हैं कि इन सब पर तो झारखण्ड बीजेपी के बड़े ओहदेदारों और बड़े नेताओं के तथाकथित बॉसिज़्म और निरंकुशता ने ‘उच्चाटन क्रिया ‘ का प्रयोग कर दिया है। ये अपने आकाओं की तरह सिर्फ ‘खानापूर्ति ‘ अधिकारी बन कर रह गए हैं। मोदी के नाम के कारण बस ऊपर ऊपर भाजपाई बने दिख रहे हैं। इस बड़े से ‘बदलाव ‘ की जिम्मेदारी किसके या किनके सर होगी कौन बताएगा ? किसके हिम्मत है ?
……….तो हेमंत सोरेन के लिए तो पूरा मैदान खुला हुआ है न , कैसे नहीं कहेगा कोई कि अबकी बार झारखण्ड में पुरे ज़ोर शोर से ‘हेमंती बयार’ बह रही है ! उस पर हेमंत ने दोनों हाथों सरकारी उपहार लुटाना आरभ किया हुआ है ; चाहे वह आम झारखंडी आबादी हो या झारखंडी मीडिया हाउस । अपने विभागों और अधिकारीयों को तत्पर कर रखा है कि उसकी सारी योजनाएं अकाट्यरूप से लाभुकों तक पहुंचें। मुस्लिम और आदिवासी आबादी को सर पर बैठा ररखा है , तो ले कर चलिए कि ये वोट तो हेमंती हुए इस बार !
उधर झारखण्ड बीजेपी जिन भी बड़े आदिवासी नेताओं को अपने खेमे में ला रही है बहुत संभव है वो इस बार ‘वोटकटवा ‘ से ज्यादा कुछ भी साबित न हो पाएं। ये बात इसलिए भी सच लग रही है क्योंकि पिछले चुनाव में भी तो ‘बड़े आदिवासी नेता ‘ गण बीजेपी के खेमे में आये थे। क्या और कितना कर लिया ? उस बार भी असन्तुष्ट और उपेक्षित बीजेपी कार्यकर्ताओं ने लुटिया डूबा दी थी। अबकी बार क्या नया हुआ है ?
बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व को जिन जिन झारखंडी बीजेपी नेताओं ने मीठा मीठा बोल लिया वो दल के नेतृत्वकर्ता बन के ‘बड़का बाबू ‘ बने हुए हैं और वास्तविक कार्यकर्त्ता लाचार से घर में बैठे हुए हैं , और कुछ लार टपकाये बैठे हैं कि शायद इस बार उनकी लॉटरी लग जाये। सही नेतृत्वकर्ताओं का आभाव ही झारखण्ड में बीजेपी के प्रभाव को नेस्तोनाबूत कर रहा है ; यह जब तक भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व मानने को तैयार नहीं होगा भाजपा झारखण्ड में दूसरी सीट पर ही रहेगी। दो चार आदिवासी खम्भे महल नहीं बना देंगें। भाजपा को झारखण्ड में एक सर्वथा नई टीम की तत्काल आवश्यकता है यह केंद्रीय नेतृत्व को कौन समझा पायेगा यह देखना आकर्षक होगा ।
अंततः यही प्रतीत हो रहा है कि अगली बार जो हो सो हो , इस बार तो झारखण्ड के पहाड़ों, नदियों, झरनों से ले कर शहरी मैदानों तक ‘हेमंती हवा’ फैली हुई है और पशु – पक्षियों तक को ठंडक पहुंचा रही है। पेड-अनपेड ‘टूलकिट’ का लाभ जो मिल रहा है वह अलग।
यहाँ झारखंडी भाजपाइयों को निरुत्साहित करने का कोई प्रयोजन नहीं ; किंतु झारखण्ड के बीजेपी नेतृत्व को इतनी मेहनत तो करनी ही चाहिए कि मुक़ाबला रोचक हो सके ! बाप या खानदान के नाम पे खा-खा के कितने दिन ज़ी लेगा कोई ? चाचाओं और मामाओं में अब वो जान नहीं रही, नई पीढ़ी खुद कुछ कमाना भी सीखे !