राजनीति की नकारात्मकता और संविधान: एक संपादकीय विश्लेषण

  • PURNENDU PUSHPESH, Chief Editor

लोकसभा चुनावों के दौरान, कांग्रेस के नेतृत्व में इंडी गठबंधन ने व्यापक स्तर पर एक झूठा नैरेटिव चलाया कि यदि नरेंद्र मोदी केंद्र में 400 सीटों के साथ सरकार बनाने में सफल हो जाते हैं, तो संविधान बदल दिया जाएगा और भविष्य में फिर कोई चुनाव नहीं होगा। इस झूठे प्रचार ने चुनाव को प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप भाजपा अकेले पूर्ण बहुमत नहीं ला पाई। चुनाव के बाद संसद के प्रथम सत्र में इंडी गठबंधन के नेता संविधान के पॉकेट साइज संस्करण को लहराते दिखाई दिए, जिससे संविधान की सुरक्षा को लेकर देश में तीखी राजनीतिक बहस शुरू हो गई। राहुल गांधी, अखिलेश यादव, और शशि थरूर जैसे नेताओं ने भी इसी पॉकेट साइज संस्करण को हाथ में लेकर शपथ ली। विपक्ष का इरादा आगामी विधानसभा चुनाव में भी संविधान की रक्षा करने का नैरेटिव चलाने का है, क्योंकि उन्हें लगता है कि संविधान, आरक्षण, और लोकतंत्र की रक्षा के झूठे नैरेटिव के सहारे ही भाजपा का विजय रथ रोका जा सकता है। संविधान की रक्षा के नाम पर दलितों, पिछड़ों, और अति पिछड़ों को भाजपा से दूर किया जा सकता है।

इस वर्ष देश को कांग्रेस द्वारा लगाए गए आपातकाल के 50 वर्ष भी हो रहे हैं। संसद के प्रथम संक्षिप्त सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, और प्रधानमंत्री मोदी ने आपातकाल को याद करते हुए कांग्रेस और संपूर्ण विपक्ष को आईना दिखाया। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में आपातकाल को सबसे बड़ा काला अध्याय बताया था। लोकसभा अध्यक्ष ने आपातकाल की भर्त्सना का प्रस्ताव लाया और सदन में दो मिनट का मौन रखा।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की राजनीति के सबसे काले अध्याय आपातकाल से वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों को अवगत कराने के लिए अब केंद्र सरकार ने प्रतिवर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। यह एक महत्वपूर्ण निर्णय है, क्योंकि उन लोगों को यह जानना चाहिए जिन्होंने आपातकाल का दौर नहीं देखा, कि संविधान के साथ खिलवाड़ वास्तव में क्या होता है।

संविधान हत्या दिवस की अधिसूचना आने के बाद, हर वर्ष 25 जून को कांग्रेस के काले कारनामे जनता को याद दिलाए जाएंगे। स्वाभाविक है कि इससे कांग्रेस और इंडी गठबंधन असहज हैं और अनाप-शनाप बयानबाजी कर रहे हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा से लेकर शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे गुट के संजय राऊत तक सभी विकृत बयान दे रहे हैं। उनका कहना है कि जिस घटना को 50 वर्ष हो चुके हैं, भाजपा उसे क्यों याद रखना चाहती है? उनके तर्क से, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस भी नहीं मनाना चाहिए क्योंकि उसके तो पचहत्तर वर्ष बीत चुके हैं।

वास्तविकता यह है कि 25 जून हर उस व्यक्ति और परिवार के घाव पर मरहम लगाने और स्मरण करने का दिन है जो इंदिरा गांधी की सत्ता लोलुपता के लिए लगाए गए आपातकाल की क्रूरता के पीड़ित हैं। इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए संविधान का गला घोंटा था। उस दौरान देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूरी तरह से छीन ली गई थी, लाखों लोगों को बिना कारण जेल भेज दिया गया था, और जेल में लोगों पर क्रूर अमानवीय अत्याचार किए गए थे। लाखों परिवारों को आपातकाल में अथाह दुःख सहना पड़ा था।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हिटलर कहने वाली कांग्रेस की रग-रग में तानाशाही भरी है। एक समय था जब कांग्रेस समाज के हर वर्ग को अपनी इच्छा के अनुरूप नियंत्रित करती थी, चाहे वह कार्यपालिका हो, न्यायपालिका या मीडिया और मनोरंजन जगत। राज्यों में गैरकांग्रेसी सरकारों को ताश के पत्तों की तरह गिरा दिया जाता था। कांग्रेस ने केवल 25 जून को ही संविधान की हत्या नहीं की, अपितु कई अवसरों पर संविधान का गला घोंटा। गांधी परिवार ने कई बार देश की न्यायपालिका के आदेशों को खारिज करवाया, जिसमें शाहबानो प्रकरण की चर्चा अभी भी होती है।

राहुल गांधी अपने पूर्वजों की राह पर चलते हुए वर्तमान समय में भी तानाशाही रवैया अपना रहे हैं और देश में अराजकता का वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अठारहवीं लोकसभा के प्रथम सत्र में देश के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री को बोलने से रोकने के लिए गजब का हंगामा किया गया। नेता प्रतिपक्ष ने सांसदों को वेल में जाकर हल्ला मचाने को बाध्य किया। यह किसी भी स्थिति में स्वस्थ लोकतंत्र का परिचायक नहीं है और कांग्रेस की तानाशाही मानसिकता को दर्शाता है।

कुछ लोग संविधान हत्या दिवस नामकरण का विरोध कर रहे हैं, लेकिन यह नाम पूरी तरह से सही और सटीक है। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या के विवादित ढांचे के टूटने के बाद भाजपा शासित चार राज्यों की चुनी हुई सरकार को बिना कारण बर्खास्त कर दिया गया था। शिवसेना नेता संजय राऊत तो दो कदम आगे बढ़कर पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी पर आरोप लगा रहे हैं कि वह भी आपातकाल लगा सकते थे। संजय राऊत यह बात भूल गए हैं कि अटल जी ने गठबंधन राजनीति में भी शुचिता की पराकाष्ठा स्थापित की और किसी भी प्रकार का गलत गठबंधन नहीं किया।

केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित करके एक तीर से कई निशाने साधे हैं। इससे जहां एक ओर कांग्रेस असहज हुई है, वहीं जो लोग केंद्र सरकार को कमजोर समझ रहे थे, वे भी सकते में हैं। साथ ही आपातकाल के बाद जन्मी पीढ़ी इसके विषय में जानने को उत्सुक है।

यह जरूरी है कि देश की जनता को आपातकाल और उसकी विभीषिका के बारे में बताया जाए ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति इंदिरा गांधी जैसी हरकत दोबारा न कर सके। संविधान की हत्या, तानाशाही, और तुष्टीकरण के घृणित उदाहरणों को उजागर करना ही लोकतंत्र की सच्ची सेवा है।