राष्ट्रीय प्रेस दिवस: स्वतंत्र पत्रकारिता और उभरते पत्रकारों की चुनौतियां

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।  

हर साल 16 नवंबर को मनाया जाने वाला राष्ट्रीय प्रेस दिवस न केवल पत्रकारिता की स्वतंत्रता और उसके महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि उन अनगिनत संघर्षशील पत्रकारों की मेहनत और जुझारूपन का भी सम्मान करता है, जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। यह दिन पत्रकारिता के पेशे में नैतिकता और निष्पक्षता की अहमियत को दोहराने का मौका है। लेकिन इस मौके पर यह सवाल भी उठता है कि क्या वास्तव में पत्रकारों, खासकर नए और स्वतंत्र पत्रकारों को वह सम्मान और समर्थन मिलता है, जिसके वे हकदार हैं?

छोटे और स्वतंत्र पत्रकारों की भूमिका

बड़े मीडिया हाउसों और उनके चकाचौंध भरे ग्लैमर से परे, छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले स्वतंत्र पत्रकारों की भूमिका सबसे अहम है। ये पत्रकार न केवल सच्चाई को उजागर करने का साहस करते हैं, बल्कि स्थानीय मुद्दों और समाज की जमीनी हकीकत को सामने लाते हैं। वे उन समस्याओं की रिपोर्टिंग करते हैं जो मुख्यधारा की मीडिया में अक्सर अनदेखी रह जाती हैं।

इनकी चुनौती तब और बढ़ जाती है जब इनके पास सीमित संसाधन होते हैं। ये पत्रकार अपने दम पर खबरें जुटाते हैं, उन्हें सत्यापित करते हैं और उन्हें जनता तक पहुंचाते हैं। उनके पास बड़ी संस्थाओं का बैकअप नहीं होता। इसके बावजूद, उनकी रिपोर्टिंग निष्पक्ष होती है और जनता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता साफ झलकती है।

स्वतंत्र मीडिया हाउस: संघर्ष और अस्तित्व की लड़ाई

आज कई युवा पत्रकार अपने दम पर स्वतंत्र मीडिया हाउस स्थापित कर रहे हैं। इनका उद्देश्य पारंपरिक मीडिया की एजेंडा-चालित पत्रकारिता से हटकर निष्पक्षता और सच्चाई को बनाए रखना है। लेकिन उनके सामने अनगिनत चुनौतियां खड़ी हैं।

आर्थिक असुरक्षा

इन पत्रकारों और उनके मीडिया हाउसों के लिए सबसे बड़ी समस्या आर्थिक असुरक्षा है। 1000 रुपये के विज्ञापन की व्यवस्था करने के लिए उन्हें कई बार 500 रुपये से अधिक का ईंधन खर्च करना पड़ता है। विज्ञापन प्राप्त करने के लिए न केवल उन्हें संघर्ष करना पड़ता है, बल्कि कई बार अपनी गरिमा भी दांव पर लगानी पड़ती है। यह स्थिति न केवल उनकी स्वतंत्रता को प्रभावित करती है, बल्कि उन्हें मानसिक और आर्थिक रूप से भी कमजोर बनाती है।

कानूनी और प्रशासनिक दबाव

स्वतंत्र मीडिया हाउसों का निबंधन और संचालन कई राज्यों में सरकार की सख्त और जटिल नियमावलियों के कारण एक कठिन कार्य बन चुका है। डिजिटल मीडिया के लिए ऐसी शर्तें बनाई गई हैं जो छोटे पत्रकारों को हतोत्साहित करती हैं। बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में हाल ही में लागू हुई नियमावलियों ने यह साफ कर दिया है कि स्वतंत्र पत्रकारों को जगह देने की बजाय उनकी आवाज को दबाने का प्रयास हो रहा है।

प्रताड़ना और सुरक्षा का अभाव

स्थानीय प्रशासन, नेता और ठेकेदार स्वतंत्र पत्रकारों को अक्सर निशाना बनाते हैं। इनके खिलाफ झूठे मुकदमे, मानहानि के आरोप, और शारीरिक खतरे जैसे मुद्दे आम हो गए हैं। पुलिसिया दबाव और राजनीतिक गुंडों की धमकी से इन पत्रकारों को हर समय अपने जीवन और काम की सुरक्षा की चिंता सताती है।

छोटे मीडिया हाउस को स्थापित करने में सरकार की भूमिका

छोटे और नवोदित मीडिया हाउसों को स्थापित करने की जिम्मेदारी सरकारों की है। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, और इसे सशक्त बनाने में सरकारों की अहम भूमिका होनी चाहिए।

आर्थिक सहायता और प्रोत्साहन

सरकारें विभिन्न उद्योगों और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक सहायता और कर में छूट प्रदान करती हैं। लेकिन छोटे मीडिया हाउसों और पत्रकारों को ऐसी कोई सहायता नहीं दी जाती। सरकार को चाहिए कि वह स्वतंत्र पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिए विज्ञापन की शर्तों को सरल बनाए और छोटे मीडिया हाउसों को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष योजनाएं शुरू करे।

निबंधन प्रक्रिया को आसान बनाना

नए मीडिया हाउसों के लिए निबंधन और संचालन की प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाना चाहिए। डिजिटल मीडिया के लिए अलग और व्यवहारिक नियम तैयार किए जाएं, ताकि स्वतंत्र पत्रकार बिना किसी कठिनाई के अपना काम कर सकें।

सुरक्षा और संरक्षा

पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष कानून बनाए जाने चाहिए। पत्रकारों के खिलाफ हिंसा या धमकी के मामलों में कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। साथ ही, स्वतंत्र पत्रकारों को कानूनी और प्रशासनिक संरक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे निर्भीक होकर अपना काम कर सकें।

वरिष्ठ और नवोदित पत्रकारों के बीच सामंजस्य

पत्रकारिता के क्षेत्र में एक बड़ी खाई वरिष्ठ और नवोदित पत्रकारों के बीच देखी जाती है। जहां वरिष्ठ पत्रकार अपनी स्थिति का लाभ उठाकर नए पत्रकारों को संवादसूत्र के रूप में इस्तेमाल करते हैं, वहीं नवोदित पत्रकारों को सही मार्गदर्शन नहीं मिल पाता।

जरूरत इस बात की है कि वरिष्ठ पत्रकार अपने अनुभव और ज्ञान को नए पत्रकारों के साथ साझा करें। एक सशक्त और एकजुट पत्रकारिता समुदाय ही लोकतंत्र की रक्षा में सक्षम हो सकता है।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस का संदेश

राष्ट्रीय प्रेस दिवस न केवल पत्रकारिता के गौरव का उत्सव है, बल्कि आत्ममंथन का भी समय है। इस दिन हमें यह समझने की जरूरत है कि स्वतंत्र पत्रकारिता केवल पत्रकारों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि सरकार, समाज और नागरिकों की भी जिम्मेदारी है।

सरकार को चाहिए कि वह बड़े मीडिया हाउसों की तुलना में छोटे और स्वतंत्र पत्रकारों को अधिक समर्थन दे। यह छोटे और नवोदित मीडिया हाउस ही हैं, जो बिना किसी एजेंडे के जनता की आवाज बनते हैं। इनके बिना लोकतंत्र अधूरा है।

इस अवसर पर हमें यह भी संकल्प लेना चाहिए कि हम पत्रकारिता की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा करेंगे। पत्रकारों के संघर्ष को सम्मान और सहयोग देकर ही हम एक मजबूत और सशक्त लोकतंत्र का निर्माण कर सकते हैं।

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर, आइए हम यह प्रण लें कि सच्चाई और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए हम हर संभव प्रयास करेंगे। पत्रकारिता का भविष्य हमारे हाथों में है, और इसे संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है।