कांग्रेस का ‘संविधान रक्षक अभियान’: झारखंड की राजनीति में हिडेन एजेण्डा?

सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।  

कांग्रेस द्वारा झारखंड में 60 दिवसीय ‘संविधान रक्षक अभियान’ चलाने की घोषणा एक ओर लोकतंत्र, समानता और अधिकारों के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने की कोशिश है, तो दूसरी ओर यह राजनीतिक मंशा और रणनीतिक लक्ष्यों से प्रेरित प्रतीत होती है। अभियान के प्रमुख विषय- संविधान की सुरक्षा, आरक्षण की रक्षा, सामाजिक न्याय, अल्पसंख्यकों के अधिकार, और जातीय जनगणना का समर्थन- सीधे-सीधे भाजपा के राजनीतिक एजेंडे पर हमला करने के इरादे से चुने गए हैं। परंतु, इसके भीतर छिपे कुछ अन्य संकेत झारखंड की राजनीति के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

कांग्रेस का ‘संविधान रक्षक अभियान’ और भाजपा पर निशाना
कांग्रेस इस अभियान के जरिए भाजपा को संविधान और सामाजिक न्याय विरोधी दिखाने का प्रयास कर रही है। संविधान और आरक्षण के मुद्दों को केंद्र में रखते हुए, कांग्रेस ने अपने मतदाताओं को यह संदेश देने की कोशिश की है कि भाजपा की नीतियाँ इन मूलभूत अधिकारों को कमजोर कर रही हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य में जहां पहले से ही सामाजिक और आर्थिक असमानता एक बड़ा मुद्दा है, वहां कांग्रेस का यह अभियान किस दिशा में जा रहा है? भाजपा विरोध के नाम पर कांग्रेस का यह कदम केवल जागरूकता फैलाने का नहीं, बल्कि राजनीतिक ध्रुवीकरण करने का माध्यम भी है। एससी, एसटी, ओबीसी, और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के नाम पर यह अभियान एक ऐसा मंच तैयार करने की कोशिश है, जो भाजपा के खिलाफ विपक्ष को संगठित कर सके। इसके माध्यम से कांग्रेस झारखंड के सामाजिक और जातीय समूहों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है।

हेमंत सोरेन सरकार और कांग्रेस का असंतुलन
हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड में विकास और सामाजिक न्याय को प्राथमिकता दी है। सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने राज्य की आदिवासी, दलित और पिछड़ी जनता के हितों को केंद्र में रखा है। लेकिन कांग्रेस का यह अभियान, जो अपनी स्वतंत्र पहचान स्थापित करने और राज्य की राजनीति में अपना अलग स्थान बनाने की कोशिश है, झारखंड सरकार के साथ उसके तालमेल पर सवाल खड़ा करता है।

कांग्रेस ने अपने एजेंडे में आरक्षण और जातीय जनगणना जैसे मुद्दों को प्राथमिकता दी है। यह सीधे झामुमो की नीतियों के साथ मेल खाता दिखता है, लेकिन कांग्रेस का प्रचार तरीका इसे प्रतिस्पर्धात्मक बना देता है। झारखंड की गठबंधन सरकार में कांग्रेस का यह कदम सोरेन सरकार की छवि को कमजोर करने और खुद को एक मजबूत विपक्षी आवाज के रूप में पेश करने की कोशिश भी हो सकता है।

जातीय जनगणना की भूमिका
जातीय जनगणना का मुद्दा झारखंड की राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। कांग्रेस इसे सामाजिक न्याय और समानता के प्रतीक के रूप में पेश कर रही है। हालांकि, इसके पीछे छिपा राजनीतिक लाभ साफ झलकता है। कांग्रेस इस मुद्दे पर जनता का समर्थन जुटाकर झारखंड में भाजपा के साथ-साथ झामुमो पर भी दबाव बनाना चाहती है। जातीय जनगणना न केवल सामाजिक न्याय का एक अहम पहलू है, बल्कि इसे वोट बैंक की राजनीति में भी देखा जा सकता है। कांग्रेस इस मुद्दे को उठा कर झारखंड में एससी, एसटी और ओबीसी मतदाताओं को अपने पक्ष में लामबंद करने की रणनीति पर काम कर रही है। लेकिन यह हेमंत सोरेन की सरकार के लिए परेशानी का सबब बन सकता है, क्योंकि इससे उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े हो सकते हैं।

राजनीतिक ध्रुवीकरण की कोशिश
‘संविधान रक्षक अभियान’ के तहत कांग्रेस द्वारा एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर जोर दिया जाना, झारखंड में सामाजिक ध्रुवीकरण की दिशा में एक कदम हो सकता है। भाजपा को पूंजीपतिपरस्त और अल्पसंख्यक विरोधी दिखाने का प्रयास कांग्रेस के लिए सहानुभूति और समर्थन जुटाने का एक साधन हो सकता है। लेकिन यह झारखंड की गठबंधन सरकार में विश्वास की कमी और आपसी तालमेल की कमी को भी उजागर करता है।

कांग्रेस का यह कदम झारखंड की राजनीति में न केवल भाजपा को कमजोर करने की कोशिश है, बल्कि झामुमो के भीतर अपने प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास भी है। यह देखा जा सकता है कि कांग्रेस अपनी अलग पहचान बनाकर आने वाले चुनावों में खुद को मजबूत विकल्प के रूप में पेश करना चाहती है।

सोरेन सरकार के विकास एजेंडे पर असर
हेमंत सोरेन ने झारखंड में आदिवासी और पिछड़े समुदायों के कल्याण और राज्य के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित किया है। लेकिन कांग्रेस का यह अभियान, जो राजनीतिक प्राथमिकताओं और जातीय मुद्दों पर केंद्रित है, सोरेन सरकार के विकास एजेंडे को प्रभावित कर सकता है। यदि कांग्रेस अपने राजनीतिक हित साधने के लिए अभियान को विभाजनकारी दिशा में ले जाती है, तो इससे झारखंड की सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता पर असर पड़ सकता है।

कांग्रेस की मंशाः सहयोग या प्रतिस्पर्धा?
कांग्रेस के श्संविधान रक्षक अभियानश् की मंशा सहयोग से अधिक प्रतिस्पर्धा की लगती है। कांग्रेस, जो झारखंड में गठबंधन का हिस्सा है, इस अभियान के माध्यम से अपने हितों को साधने की कोशिश कर रही है। यह कदम कांग्रेस के राजनीतिक एजेंडे को स्पष्ट करता है, लेकिन यह झामुमो-कांग्रेस गठबंधन में दरार भी पैदा कर सकता है।

अंततः कांग्रेस का ‘संविधान रक्षक अभियान’ लोकतांत्रिक मूल्यों और समानता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता का प्रतीक हो सकता है, लेकिन इसके राजनीतिक इरादे और रणनीतिक पहलू भी साफ झलकते हैं। यह अभियान भाजपा को कमजोर करने के साथ-साथ झारखंड में कांग्रेस की पकड़ मजबूत करने की कोशिश है। हालांकि, यह झामुमो-कांग्रेस गठबंधन और हेमंत सोरेन सरकार के विकास एजेंडे के लिए चुनौतियां खड़ी कर सकता है।

हेमंत सोरेन को इस अभियान के संभावित प्रभावों पर ध्यान देना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि कांग्रेस का यह कदम झारखंड की राजनीति और विकास के लिए बाधा न बने। साथ ही, कांग्रेस को यह समझना होगा कि गठबंधन में स्थिरता और सहयोग बनाए रखना ही झारखंड के लोगों के हित में है….