बोकारो की जनता को बहकाना नहीं, सच्चाई बताना जरूरी है

सम्पादकीय: पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘  

लोकतंत्र की बुनियाद उस भरोसे पर टिकी होती है जो जनता अपने प्रतिनिधियों पर करती है। जब यह भरोसा टूटता है, तो केवल एक व्यक्ति या दल ही नहीं, बल्कि पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर सवाल खड़े हो जाते हैं। बोकारो की वर्तमान विधायक श्वेता सिंह पर जो आरोप लगे हैं और जो तथ्य अब सामने आए हैं, वे केवल कानूनी उल्लंघन नहीं हैं, बल्कि नैतिक रूप से भी अत्यंत गंभीर हैं। दो पैन कार्ड, चार मतदाता पहचान पत्र, संपत्ति संबंधी अधूरी जानकारी और सरकारी बकाया को छुपाना – ये सब सिर्फ कागज़ी गलतियाँ नहीं, बल्कि लोकतंत्र के साथ एक प्रकार का छल है।

आज के दिन जगजाहिर है कि श्वेता सिंह ने वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव के अपने शपथ पत्र में झूठी जानकारी दी है। उन्होंने जानबूझकर यह छुपाया कि इनपर बीएसएल द्वारा HSCL पुल में दिए गए आवास पर किराया और बिजली के मद में चुनाव के समय 45,000 रुपए बाकी थे। साथ ही दो पैन कार्ड, चार वोटर आईडी भी इनके पास है। जिसके आधार पर इनका दो नाम, दो पति, दो पिता और तीन ( 39, 41 और 43 वर्ष ) तरह की उम्र है। इस आधार पर जांच, न्याय और सजा मांग की गई है।

पूर्व विधायक विरंची नारायण (भाजपा ) ने राजयपाल को ही नहीं बल्कि डुमरी विधायक और JLKM के सुप्रीमो जयराम महतो की पार्टी ने भी विधानसभा अध्यक्ष से इसी आधार पर श्वेता सिंह की विधायकी रद्द करने की मांग कर डाली है।

श्वेता सिंह के खिलाफ मिली शिकायत की जांच कर बोकारो डीसी विजया जाधव ने मुख्य चुनाव आयुक्त ( सी. ई. सी. ) को अपनी रिपोर्ट भेज दी है। उन्होंने भारत सरकार के जनप्रतिनिधि अधिनियम 1951के तहत यह रिपोर्ट भेजा है। अगर यह रिपोर्ट यह तय करता है कि विधायक ने शपथ पत्र में झूठी जानकारी दी है तो विधायकी जाने का खतरा अत्यधिक बढ़ जाता है।

श्वेता सिंह पर लगे इन आरोपों की पुष्टि बोकारो की उपायुक्त विजया जाधव की ओर से मुख्य चुनाव अधिकारी को भेजी गई रिपोर्ट से हुई है। यह रिपोर्ट न केवल तथ्यों पर आधारित है, बल्कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों के तहत तैयार की गई है, जो चुनावों में पारदर्शिता और ईमानदारी सुनिश्चित करने के लिए बना है। इसी अधिनियम के अंतर्गत, यदि किसी उम्मीदवार ने चुनाव के समय गलत जानकारी दी है, तो उसकी सदस्यता रद्द की जा सकती है।

हमें याद रखना चाहिए कि इसी अधिनियम के तहत उत्तर प्रदेश के अब्दुल्ला आज़म की विधायकी गई थी और उन्हें जेल की सजा भी हुई थी। उन्होंने केवल उम्र में हेरफेर किया था। लेकिन बोकारो की विधायक पर तो एक से अधिक पहचान पत्र, दो पैन कार्ड और सरकारी बकाया छुपाने जैसे कई गंभीर आरोप हैं। अगर यह मामला कानूनी रूप से सिद्ध हो जाता है, तो श्वेता सिंह को वही परिणाम भुगतना होगा जो अन्य दोषियों को भुगतना पड़ा है।

लेकिन सवाल केवल विधायकी बचाने या खोने का नहीं है। यह सवाल है उस भरोसे का, जो बोकारो की जनता ने श्वेता सिंह पर जताया था। लोकतंत्र केवल नियमों और चुनावी प्रक्रियाओं का नाम नहीं है, यह जनता की भावनाओं, उम्मीदों और विश्वास की नींव पर खड़ा होता है। जब कोई जनप्रतिनिधि उस भरोसे को तोड़ता है, तो वह न केवल एक कानूनी अपराध करता है, बल्कि एक नैतिक पाप भी करता है।

दुर्भाग्य से, इस पूरे प्रकरण में विधायक या उनकी ओर से कोई स्पष्ट स्वीकारोक्ति या स्पष्टीकरण नहीं आया है। उल्टा, मीडिया में चुने हुए पत्रकारों के समक्ष प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के अपनी उपलब्धियों का बखान और पूर्व विधायकों पर आरोप-प्रत्यारोप ही सुनाई दे रहा है। इस प्रकार की “थेथरई” केवल नुकसान करेगी, लाभ नहीं। कांग्रेसी दलों द्वारा इस तरह की प्रतिक्रियाएं नई नहीं हैं, लेकिन क्या बोकारो की जनता को भी इसी प्रवृत्ति के हवाले छोड़ दिया जाएगा?

यह सही समय है जब श्वेता सिंह को बोकारो की जनता के सामने आकर पूरी सच्चाई रखनी चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपनी गलतियों को स्वीकारें। यदि वास्तव में पैन कार्ड दो हैं, सरकारी बकाया है, और शपथ पत्र में जानकारी छुपाई गई है, तो यह स्वीकार करना ही पहला नैतिक कदम होगा।

भारत का लोकतंत्र बहुत कुछ सह सकता है, लेकिन वह झूठ और दंभ को हमेशा नहीं सहता। हो सकता है चुनाव आयोग माफ़ न करे, लेकिन बोकारो की जनता करुणा, संवेदना और सच्चाई को पहचानती है। अगर श्वेता सिंह अपनी गलती मान लें, बोकारो की जनता से माफ़ी मांगें, और सार्वजनिक रूप से कहें कि जो हुआ, वह जानबूझ कर नहीं बल्कि भूलवश हुआ – तो संभव है जनता उनका पुनः स्वागत करे।

ऐसे उदाहरण भारतीय राजनीति में पहले भी देखे गए हैं जहाँ जनप्रतिनिधि ने अपने पाप स्वीकारे और जनता ने उन्हें और अधिक सम्मान के साथ फिर से चुना। यह रास्ता कठिन है, लेकिन यही एकमात्र नैतिक और लोकतांत्रिक रास्ता है।

यह भी महत्वपूर्ण है कि कांग्रेसी नेतृत्व, विशेषकर झारखंड में, यह समझे कि अब समय बदल चुका है। जनता अब केवल वादों पर नहीं, बल्कि नैतिक मूल्यों और पारदर्शिता पर नेताओं को परखती है। विकास का ट्रेलर दिखाने से पहले यह जरूरी है कि ईमानदारी की पटकथा जनता को दिखाई जाए।

यदि आज श्वेता सिंह और उनका दल यह सोचते हैं कि केवल कुछ योजनाओं के उद्घाटन, कुछ पीआर कार्यक्रम और कुछ बयानबाजी से जनता का ध्यान भटकाया जा सकता है, तो वे भ्रम में हैं। सोशल मीडिया, स्वतंत्र पत्रकारिता और जनता की जागरूकता अब इस स्तर तक पहुंच चुकी है कि कोई भी बात अधिक दिन तक छिपी नहीं रह सकती।

इस सम्पूर्ण मामले में चुनाव आयोग को भी सक्रिय और निष्पक्ष रुख अपनाना होगा। यह महज बोकारो की एक सीट का मामला नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए एक उदाहरण स्थापित करने का अवसर है कि लोकतंत्र में झूठ और बेईमानी के लिए कोई जगह नहीं है – चाहे वह किसी भी दल से क्यों न हो।

अंत में, हमारी यह अपील है कि श्वेता सिंह को अपने अंतरात्मा की आवाज सुननी चाहिए। बोकारो की जनता को केवल योजनाओं की सूची नहीं चाहिए, उन्हें चाहिए एक सच्चा और ईमानदार प्रतिनिधि। अगर श्वेता सिंह में सच्चाई को स्वीकारने का साहस है, तो वह बोकारो के दिल में पुनः स्थान बना सकती हैं। लेकिन अगर वह गलती को छुपाने, दूसरों को दोष देने और जनता को भ्रमित करने की राह पर चलती रहीं, तो उन्हें भी वही राजनीतिक हश्र झेलना पड़ेगा, जो देश के अन्य छद्म प्रतिनिधियों को भुगतना पड़ा है।

ईमानदारी अब विवशता नहीं, चुनावी सफलता की पूर्वशर्त बन चुकी है। बोकारो की जनता को बहकाना नहीं, सच्चाई बताना जरूरी है। विकास का ट्रेलर नहीं, नैतिकता की फिल्म चाहिए बोकारो को। बोकारो की जनता के साथ ईमानदारी ही अब एकमात्र रास्ता है।