सम्पादकीय : पूर्णेंदु सिन्हा ‘पुष्पेश’
बोकारो में इन दिनों अपराध की तस्वीर कुछ ऐसी बनती जा रही है, जो न केवल पुलिस की सक्रियता की परीक्षा ले रही है, बल्कि आम जनजीवन के विश्वास और सुरक्षा की भावना को भी बार-बार झकझोर रही है। चोरियों और डकैतियों की घटनाएं, घरों और दुकानों में सेंधमारी, और शराब-गांजा जैसी अवैध तस्करी अब इक्का-दुक्का नहीं रह गईं — ये अब एक सिलसिलेवार चुनौती का रूप ले चुकी हैं।
सत्ता पक्ष में व्याप्त भ्रष्टाचार, नौकरियों और रोज़गार की कमी, निचले स्तर तक व्याप्त राजनीतिक संरक्षण — ये सब सामाजिक असंतुलन के कारण तो हैं ही, परन्तु बोकारो में बढ़ते अपराध का मुख्य कारण है — ‘भय का समाप्त हो जाना’। जब अपराधी यह समझने लगते हैं कि उनके खिलाफ कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं होगी, कि कानून में उनके लिए कोई सख्त सजा नहीं आएगी, तब वे खुलकर खेलते हैं। और यही स्थिति आज बोकारो में देखने को मिल रही है।
‘आस्था ज्वेलर्स’ में हुई चोरी की गूँज थमी भी नहीं थी कि ‘माई ज्वेलर्स’ को भी निशाना बना लिया गया। कल ही दो मोहल्लों में चार से छह घरों में चोरियां हो गईं। ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि क्या अपराधी अब सीधे पुलिस को चुनौती देने लगे हैं? यह कोई संयोग नहीं है कि अपराध एक के बाद एक घटनाओं की श्रृंखला में बदलते जा रहे हैं। यह साफ़ संकेत है — डर खत्म हो गया है, और अब डर पैदा करना होगा।
बेशक, पुलिस कार्रवाई कर रही है। हर दिन थानों से गिरफ्तारी और बरामदगी की खबरें आ रही हैं। जिले के नए पुलिस कप्तान आईपीएस हविंदर सिंह के नेतृत्व में थानों में गति और सतर्कता भी दिख रही है। परंतु हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि सिर्फ घटना के बाद की कार्रवाई काफी नहीं है, अब वक्त है घटना से पहले सक्रिय हो जाने का — यानी प्रिवेंटिव पुलिसिंग का।
पुलिस को यह समझना होगा कि जबतक अपराधियों के मन में “क्या होगा अगर पकड़े गए?” वाला डर नहीं बैठेगा, तबतक वे अपराध को पेशे के रूप में अपनाएंगे। यह डर तभी पैदा होगा जब उन्हें समय पर और सार्वजनिक रूप से सजा मिले। सिर्फ एफआईआर दर्ज करने से, या प्रेस नोट जारी करने से न तो जनता को संतोष मिलता है, और न ही अपराधियों को सबक।
मानवाधिकार की बात अपनी जगह है, लेकिन क्या समाज के अधिकारों की बात कोई नहीं करेगा? जबतक अपराधी अपने किए की पूरी सच्चाई उगल नहीं देते, पुलिस को पूछताछ के तमाम व्यावहारिक और कानूनी तरीके अपनाने चाहिए। इस प्रक्रिया में अति सहिष्णुता कहीं अपराधियों के लिए ढाल न बन जाए — यह संतुलन जरूरी है।
हसन चिकना का कांड इस संदर्भ में एक उदाहरण के रूप में बार-बार याद किया जाता है। जब बोकारो में एसबीआई के 72 लॉकर उड़ाने की घटना सामने आई थी, तो पूरा शहर सकते में आ गया था। एक बड़ी कार्रवाई हुई, गिरफ्तारियां हुईं, पहचान परेड कराई गई। लेकिन अंत में — “सब धाक के तीन पात”। जनता को मिला क्या? यही निराशा बार-बार मन में यह डर पैदा करती है कि “कुछ नहीं होगा।” यही डर खत्म करना सबसे पहली जिम्मेदारी है पुलिस की।
यह वक्त पुलिस के लिए एक अवसर भी है। अवसर — जनता का भरोसा जीतने का, अवसर — यह दिखाने का कि बोकारो अब अपराधियों की शरणस्थली नहीं, बल्कि कानून के शासन का उदाहरण बनेगा।
इसके लिए कुछ जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए; मसलन – रात्रिकालीन गश्त को एक औपचारिकता नहीं, एक रणनीतिक पहल बनाना होगा। संदिग्ध किरायेदारों और बाहरी व्यक्तियों की कड़ी निगरानी सुनिश्चित हो। व्यापारिक इलाकों, ज्वेलरी शॉप्स, और आवासीय सोसाइटियों में CCTV नेटवर्क को अनिवार्य किया जाए। पुलिस और आम नागरिकों के बीच सीधे संवाद के लिए मोहल्ला बैठकें और सोशल मीडिया निगरानी तंत्र बनें। अपराधियों की मनोवैज्ञानिक प्रोफाइलिंग के आधार पर टारगेटेड निगरानी की जाए। आदि – आदि।
इन उपायों के साथ, पुलिस को यह भी समझना होगा कि जनता न केवल पुलिस पर विश्वास करती है, बल्कि उसके साथ खड़ी भी है। आज नागरिक अपने मोहल्ले में गश्त करने वाली टीम को देखना चाहता है। वह चाहता है कि पुलिस सिर्फ घटना के बाद नहीं, पहले भी उसके आसपास दिखे। यह विश्वास पुलिस की सबसे बड़ी पूंजी है, जिसे संभालना ज़रूरी है।
जनता अब निष्क्रिय रिपोर्टिंग नहीं, प्रभावी परिणाम चाहती है। उसे आश्वासन नहीं, अभियान चाहिए। आज का बोकारो मन में अपराध के प्रति असुरक्षा और पुलिस के प्रति उम्मीद — दोनों को साथ लेकर चल रहा है। इस उम्मीद को कायम रखना अब पुलिस के दृढ़ संकल्प और कार्यप्रणाली पर निर्भर करता है।
पुलिस को डर की उस धार को पुनः स्थापित करना होगा, जिसमें अपराधी कदम रखने से पहले दस बार सोचे। अपराधियों को यह संदेश साफ़ तौर पर जाना चाहिए — “बोकारो में अब अपराध की कोई जगह नहीं है।” यदि यह संदेश पहुँचा दिया गया, और हर थाने से उसे अमल में उतारा गया — तब न केवल अपराध रुकेगा, बल्कि बोकारो में विकास और विश्वास का नया अध्याय भी शुरू होगा।
बोकारो कप्तान आईपीएस हविंदर सिंह के नेतृत्व में बोकारो पुलिस की छवि आम जनता में सकारात्मक बनी है। लोगों को विश्वास है कि वे एक प्रतिबद्ध और सक्षम अधिकारी हैं। लेकिन यह भरोसा तभी टिकेगा जब यह दिखेगा कि अपराधियों के खिलाफ चल रही कार्रवाई एक दो मामलों तक सीमित नहीं, बल्कि एक लंबी रणनीतिक मुहिम का हिस्सा है।