भीड़ के पीछे मत भागिए, सोच-समझकर चुनिए अपना आदर्श

सम्पादकीय :  पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘   

आज की दुनिया सोशल मीडिया की दुनिया है। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स (ट्विटर) इतना घुस चुका है कि सुबह उठने से लेकर रात सोने तक हम अनगिनत चेहरों, पोस्ट और वीडियो से घिरे रहते हैं। हर जगह बस यही सवाल है – किसके कितने फॉलोवर हैं, किसकी कितनी रील वायरल हुई और किसका वीडियो ट्रेंड कर रहा है। लेकिन इस चमकदार खेल के पीछे सबसे अहम सवाल यह है कि हम किसे फॉलो कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं?

आज करोड़ों लोग अपने पसंदीदा स्टार्स को फॉलो करते हैं। किसी को फिल्मों के सितारे भाते हैं, किसी को क्रिकेटर, किसी को मॉडल्स और किसी को यूट्यूब इन्फ्लुएंसर्स। इनकी लाइफ़स्टाइल देखकर लोग प्रभावित होते हैं और बिना सोचे-समझे इन्हें आदर्श मान लेते हैं। लेकिन गौर करने वाली बात है कि जिनके करोड़ों फॉलोवर होते हैं, वे अक्सर केवल एक या दो लोगों को ही फॉलो करते हैं। यानी प्रेरणा संख्या से नहीं, चयन से आती है। अगर किसी के पास लाखों-करोड़ों फॉलोवर हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि वह सचमुच प्रेरणा का स्रोत है।

सोचिए, पान–गुटखा बेचने वाला व्यक्ति अपने विज्ञापनों से लाखों लोगों को लुभाता है, पर खुद उस ज़हर को हाथ भी नहीं लगाता। इसका मतलब साफ है कि जो चीज़ हमें दिख रही है, वही असली सच्चाई नहीं होती। यह फर्क हमें हमेशा याद रखना चाहिए – दिखावा और वास्तविकता में जमीन-आसमान का अंतर होता है।

अब ज़रा पीछे चलते हैं। हमारे समाज में फॉलो करने की परंपरा कोई नई नहीं है। पहले लोग गुरुओं को मानते थे, विचारधाराओं को अपनाते थे, नायकों को अपना आदर्श मानते थे। उस समय चयन गहरी समझ, अनुभव और मूल्यों के आधार पर होता था। किसी संत या नेता को फॉलो करना मतलब था उसके विचारों और जीवन को अपने जीवन में उतारना। लेकिन आज की डिजिटल भीड़ में यह चयन अधिकतर केवल चमक-दमक और लोकप्रियता के आधार पर होता है।

लाखों की भीड़ किसी को फॉलो करती है, पर यह सोचने की ज़हमत कम ही लोग उठाते हैं कि वह व्यक्ति समाज को क्या दे रहा है। क्या वह सचमुच हमारे जीवन को बेहतर बना रहा है, या सिर्फ मनोरंजन का साधन है? यही सवाल हमें खुद से बार-बार पूछना चाहिए।

हमारे शहीदों और महापुरुषों ने कभी लोकप्रियता के लिए त्याग नहीं किया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खाँ – इन वीरों ने अपना जीवन देश के लिए न्यौछावर कर दिया। उन्होंने कभी नहीं सोचा कि कितने लोग उन्हें फॉलो करेंगे। उनका मकसद था – अपनी सोच और कर्म से आने वाली पीढ़ी को सही रास्ते पर ले जाना। यही असली प्रेरणा है।

सोचिए, आज के सोशल मीडिया सितारे अपनी फिल्मों, फैशन या लाइफ़स्टाइल से करोड़ों फॉलोवर बना लेते हैं। लेकिन क्या उनकी चमक हमारे जीवन का अंधेरा मिटा सकती है? क्या उनकी रीलें हमें नौकरी, करियर या मुश्किल हालात से निपटने की ताकत दे सकती हैं? क्या उनकी लाइफ़स्टाइल हम जैसे आम लोगों के लिए व्यावहारिक है? साफ जवाब है – नहीं। क्योंकि जो लोग ऐशो-आराम और दिखावे की जिंदगी जीते हैं, वे आम आदमी के संघर्षों को समझ ही नहीं सकते। उनका कंटेंट मनोरंजन भर कर सकता है, दिशा नहीं दे सकता।

इसके उलट हमारी परंपरा और संस्कृति हमें हमेशा बताती रही है कि असली आदर्श वही है जो जीवन को सही दिशा दे। गीता का संदेश सिर्फ युद्धभूमि तक सीमित नहीं है, वह हर जीवन संघर्ष में काम आता है। विवेकानंद हमें आत्मविश्वास और साहस देते हैं। गांधी हमें सिखाते हैं कि सत्य और अहिंसा ही सबसे बड़ा हथियार है। डॉ. भीमराव अंबेडकर हमें समानता और अधिकारों का महत्व समझाते हैं। इनकी शिक्षा और जीवन से प्रेरणा लेना हमें न केवल बेहतर इंसान बनाता है, बल्कि पूरे समाज को भी मजबूत करता है।

आज युवाओं के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे किसे अपना आदर्श मानें। दुनिया दिखावे की ओर भाग रही है। चारों तरफ चकाचौंध है, लेकिन असली सवाल है – क्या हम इस दिखावे के पीछे भागेंगे या उन मूल्यों को अपनाएंगे जो हमें मजबूत और जागरूक बनाते हैं? असली स्टार वही है जो हमारे अंधेरे में रोशनी लाए, न कि वह जो केवल मंच पर रोशनी में चमकता दिखे।

जब हम भारतीय शहीदों और संस्कृति को फॉलो करते हैं, तो हम अपनी जड़ों से भी जुड़े रहते हैं और भविष्य को भी सुरक्षित बनाते हैं। हमारी संस्कृति सिखाती है कि जीवन का लक्ष्य सिर्फ भोग नहीं, बल्कि त्याग और सेवा है। शहीद हमें बताते हैं कि राष्ट्रहित से बड़ा कोई धर्म नहीं। इनसे प्रेरणा लेना मतलब है अपने जीवन को सार्थक दिशा देना।

अब एक और अहम बात। भीड़ हमेशा सही नहीं होती। अक्सर भीड़ अंधेरे में भी दौड़ जाती है। असली समझदारी यही है कि इंसान खुद सोच-समझकर रास्ता चुने। अगर करोड़ों लोग किसी को फॉलो कर रहे हैं, तो इसका मतलब यह नहीं कि वह इंसान सचमुच महान है। महान वही है जो बिना प्रचार-प्रसार के भी अपने जीवन से दूसरों को प्रेरणा देता है।

इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने चयन पर गंभीरता से विचार करें। किसी को फॉलो करने से पहले खुद से पूछें – क्या यह व्यक्ति मेरे जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है? क्या इसकी सोच समाज और देश के लिए उपयोगी है? क्या इसकी दिशा मुझे आगे बढ़ने में मदद करेगी? अगर जवाब हाँ है, तो उसे जरूर फॉलो करें। और अगर जवाब नहीं है, तो चाहे उसके करोड़ों फॉलोवर हों, हमें उसे अनदेखा करने का साहस रखना चाहिए।

याद रखिए, फॉलो करना सिर्फ बटन दबाने का नाम नहीं है। फॉलो करना मतलब है किसी की सोच, विचार और जीवन को अपने जीवन का हिस्सा बनाना। अगर हम ऐसे लोगों को फॉलो करेंगे जिनकी लाइफ़स्टाइल खोखली है, तो हम भी उसी खोखलेपन का हिस्सा बन जाएंगे। लेकिन अगर हम महान व्यक्तित्वों को फॉलो करेंगे, तो हमारी ज़िंदगी में भी उनकी महानता की झलक दिखेगी।

यह सिर्फ व्यक्तिगत चयन नहीं है, यह पूरे समाज की दिशा तय करता है। अगर हमारी पीढ़ी गलत आदर्श चुनेगी, तो आने वाली पीढ़ियाँ भी उसी रास्ते पर भटकेंगी। और अगर हमारी पीढ़ी शहीदों, महापुरुषों और संस्कृति को फॉलो करेगी, तो आने वाली पीढ़ियाँ भी उन्हीं मूल्यों से प्रेरित होंगी। यही ताकत एक राष्ट्र को मज़बूत बनाती है।

अंत में एक सच्चाई याद रखिए – पान-गुटखा बेचने वाला खुद गुटखा नहीं खाता। यह हमें बताता है कि दिखावे और सच्चाई में बड़ा अंतर होता है। सोशल मीडिया पर चमकते चेहरे हर बार सच्चाई नहीं होते। असली सच्चाई हमारे शहीदों के बलिदान में है, हमारी संस्कृति की गहराई में है और हमारे महापुरुषों की शिक्षाओं में है।

तो सोचिए, आप किसे फॉलो कर रहे हैं? आपका चयन ही आपके जीवन की दिशा तय करता है। भीड़ का हिस्सा बनने से अच्छा है कि सही रास्ते का यात्री बनें। और सही रास्ता वही है, जो हमारी भारतीय संस्कृति, शहीदों के बलिदान और महापुरुषों की शिक्षाओं की ओर ले जाता है।

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