प्रभु के नाम नाहीं आवै हो, चलन बेरीया……. ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

मनुष्य काम क्रोध मद लोभ मोह ममता में प्रभु को भूल जाता है यही कारण है कि जब अंत समय आता है तो उसके मुख पर प्रभु का नाम नहीं आ पाता है। साधारण मनुष्य की बात क्या ऋषि मुनि भी जो निरंतर जप तप योग करते हैं उनके मुख पर भी मृत्यु के समय प्रभु का नाम नहीं आता। इसलिए श्रद्धा प्रेम और विश्वास के साथ प्रभु का भजन करना चाहिए तभी अंत समय में प्रभु का नाम मुख पर आ पाएगा। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–

प्रभु के नाम नाहीं आवै हो, चलन बेरीया ।
मुख पै राम नाहीं आवै हो, चलन बेरीया ।।
प्रभु के नाम नहीं आवै हो……….
काम क्रोध मद में बिता दियो उमरीया ,
भटकत फिरौं प्रभु सघन अन्हरीया ,
हरि के भजन न भावै हो, चलन बेरीया ।
मुख पै राम नाहीं आवै हो चलन बेरीया ।।
प्रभु के नाम नहीं आवै हो……….
कितने जप जोग तप मुनी करते प्रभू ,
फिर भी देते किसी को हीं दर्शन प्रभू ,
हरि के दर्शन न पावैं हो, चलन बेरीया ।
मुख पै राम नाहीं आवै हो, चलन बेरीया ।।
प्रभु के नाम नहीं आवै हो……….

रचनाकार

   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र