प्रभु का नाम जपने से मन में जो आनन्द की अनुभूति होती है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। प्रस्तुत है मेरी ये रचना जिसमें श्री हरि के नाम को जपने का जो प्रभाव होता है उसे दर्शाया गया है:—
जपत मन आनन्द हरि हरि ,
जपत मन आनन्द।
कलिमल हरन जगत के तारन,
काम क्रोध मद लोभ नशावन,
कटत भव के फन्द हरि हरि,
जपत मन आनन्द ।
अंधा देखे गूँगा बोले,
लँगड़ा चल सब तीरथ होले,
बुध होहीं मतिमन्द हरि हरि,
जपत मन आनन्द ।
संकट कटै रिद्धि सिधि आवै,
सब दुख दारिद दोष मिटावै,
मिटत भव के द्वन्द हरि हरि,
जपत मन आनन्द ।
भव के द्वन्द = जन्म – मरण,
सुख – दुख, राग – द्वेष,
हर्ष – विषाद, सम्पत्ति – विपत्ति,
संयोग – वियोग इत्यादि।
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र