प्रस्तुत है शरणागत भजन के रूप में मेरी ये रचना :—
राखो अपनी शरन में रघुबंश मनी ।
मैं तो कपटी कुटिल खल लोभी प्रभू ,
मैं तो अधम पतित और भोगी प्रभू ,
तुम हो अधम उधारन पातक हनी ।
राखो अपनी शरन में……………
मैं तो भजन भाव नहीं जानू प्रभू ,
मैं तो संत गुरू को नहीं मानू प्रभू ,
मेरी मति तो प्रभू जी ममता में रमी ।
राखो अपनी शरन में……………
मैं तो आयो शरन में कृपालू प्रभू ,
दीनबंधु दीनेश दयालू प्रभू ,
मैं हूँ पातक धनी तुम दया के धनी ।
राखो अपनी शरन में…………….
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र