प्रस्तुत है लव कुश प्रसंग पर मेरी ये रचना :—–
बनवाँ में जनमे ललनवाँ ,
मगन भयो सिया जी के मनवाँ ।
बालमीकि मुनि सगुन जनायो ,
बहु भाँती गुन दोष बतायो ,
लव कुश भयो नामकरनवाँ ।
मगन भयो सिया जी के मनवाँ ।
बनवाँ में जनमे ललनवाँ………..
मुनि सौं बहु बिधि विद्या पायो ,
राम नाम महिमा बहु गायो ,
पहुँच अवध के भवनवाँ ।
मगन भयो सिया जी के मनवाँ ।
बनवाँ में जनमे ललनवाँ………..
यज्ञ अश्व श्रीराम ने छोड़े ,
रोक लियो लव कुश ने घोड़े ,
रन में छकायो बिरनवाँ ।
मगन भयो सिया जी के मनवाँ ।
बनवाँ में जनमे ललनवाँ………..
पिता पुत्र में युद्ध ठनी तब ,
जीत न पायो राम इन्हहिं जब ,
परिचय पूछे ललनवाँ ।
मगन भयो सिया जी के मनवाँ ।
बनवाँ में जनमे ललनवाँ………..
मातु पिता निज नाम बतायो ,
राम सुतन्ह हिय हर्ष लगायो ,
देवन्हि बरसायो सुमनवाँ ।
मगन भयो सिया जी के मनवाँ ।
बनवाँ में जनमे ललनवाँ………..
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र