कृष्ण सुदामा मित्रता, जगत सराहन जाय ।
ऐसी मैत्री अन्य कोई, अब तक नहीं निभाय ।।
एक गरीबी में जिया, एक द्वारकाधीश ।
कैसी अद्भुत मित्रता, चरण धोय जगदीश ।।
एक तण्डुल की पोटली, काँख में रहो छुपाय ।
एक जगत के स्वामी, छीन छीन कर खाय ।।
एक ने कुछ भी माँग न की, बिन माँगे सब पाय ।
सखा निभाई मित्रता, कुटिया महल बनाय ।।
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र