आए अँगन दुलह रघुराई…… -ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रभु श्री राम जनकपुर में जब दुल्हा रूप में जनक जी के आँगन में पधारे तब सखियाँ उनके स्वागत के लिए तैयारियाँ करने लगीं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :——

आए अँगन दुलह रघुराई ।
चरन पखारि आसन बैठावहु ,
परिछन मंगल थाल सजावहु ,
आरति करहु सुघर रघुराई ।
आए अँगन दुलह………..
रूप सलोना नजर न लागै ,
अँग अँग कामदेव छवि राजै ,
टीका कजर करहु रघुराई ।
आए अँगन दुलह………..
तीन लोक ऐसो छवि खोजा ,
पायो कतहूँ न इन्ह सम दूजा ,
रघुराई सम बस रघुराई ।
आए अँगन दुलह………..

 

रचनाकार

  ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

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