बालक राम अपने बाल चरित्र के द्वारा कैसे सबके मन को हर लेते हैं इसी प्रसंग पर सवैया में प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–
दशरथ कौशल्या के प्रेम के वश,
परब्रह्म धरी पावन नर देही ।
बहु बाल चरित्र करी प्रभु जी,
प्रभु मातु पिता को अती सुख देहीं ।
जो सारे जग को खेल खेलावत,
कौशल्या के गोद में खेलत जेही ।
आँगन चलत ठुमकि ठुमकत जब,
मैयन्ह के चित को हरि लेहीं ।
पुरजन परिजन के प्यारे दुलारे,
सबै सुख देत चलैं मन मोही ।
‘ब्रह्मेश्वर’ के उर बसहु सदा,
सोइ बालक रूप जो परम सनेही ।
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र