माता कौशल्या बालक राम को लोरी गा गा कर सुला रहीं हैं। कहतीं हैं कि हे रघुबीर सूर्य अस्त हो गए, रात्रि हो गई, अंधेरा छा गया, घर घर दीपक जलने लगे। देखो पक्षी अपने अपने घोसले में चले गए, चन्द्रमा उदय ले लिये, तारे निकल गए, कमल मुर्झा गए और कुमुद खिल गए, अब तुम भी सो जाओ। प्रेम रस में पगी हुई माता से लोरी सुन कर बालक राम सो गए। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–
सोजा रघुबर प्यारे सोजा ।
पक्षी दुबके निरव नीड़ में,
सूरज निज गेह पधारे ।
सोजा!
सोजा रघुबर प्यारे सोजा ।
रजनी आई ओढ़ अँधेरा,
घर घर दीपक बारे ।
सोजा!
सोजा रघुबर प्यारे सोजा ।
खिल गए कुमुद कमल मुर्झाए,
निकले चन्दा तारे ।
सोजा!
सोजा रघुबर प्यारे सोजा ।
सुन लोरी जो पगी प्रेमरस,
सो गए राजदुलारे ।
सोजा!
सोजा रघुबर प्यारे सोजा ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र