हमार प्रभू जी सुधिया काहे ना लिहनी…….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

हे प्रभु आपने गणिका, गिद्ध, अजामिल, सदन कसाई आदि सभी पापियों की सुध ली उन्हें तारा, आपने शबरी, अहिल्या का भी उद्धार किया पर हे प्रभु मेरी सुध आपने क्यों नहीं ली ? हे कृपालु आपका तो यह प्रण है कि आप अपने भक्तों की सुधि रखते हैं और उनका उद्धार करते हैं। मुझे भी तारिये प्रभु मेरा भी उद्धार कीजिए। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है भोजपुरी में लिखी मेरी ये रचना :—–

हमार प्रभू जी सुधिया काहे ना लिहनी ।
हम त मलिन मन कुटिल खल कामी ,
रउरा त अधम उधारन कहानी ,
हमार प्रभू जी प्रणवाँ काहे ना रखनी ।
हमार प्रभू जी सुधिया………….
गणिका के तरनी अजामिल के तरनी ,
सदन कसाई के रउरे उधरनी ,
हमार प्रभू जी हमके काहे ना तरनी ।
हमार प्रभू जी सुधिया………….
केवँट के तरनी जटायू के तरनी ,
ग्राह के मारिके गज के उबरनी ,
हमार प्रभू जी हमके काहे भुलवनी ।
हमार प्रभू जी सुधिया…………

 

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र