हे भाई राम नाम अत्यंत सुखकारी है भजन करो। बड़े भाग्य से मनुष्य शरीर मिलता है और मनुष्य इसे सत्कर्म में न लगा कर दुष्कर्म में रत हो जाता है। ममता मोह में प्रभु को भुला देता है। भोग विलास में उमर बिता देता है और जब अन्त समय आता है तब पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाता है इसलिये हे भाई ठोड़ा समय प्रभु के लिए भी निकालो और प्रभु का भजन करो। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–
कि आरे भाइ राम नाम सुखदाई ,
भजन करू भाई रे भाई ।
बड़े भाग्य मानुष तन पाया ,
जनम अकारथ जाई ।
भजन करू भाई रे भाई ।
कि आरे भाई राम नाम………
ममता मोह में प्रभु को भुलाया ,
भूल गए रघुराई ।
भजन करू भाई रे भाई ।
कि आरे भाई राम नाम………
उमर बीत गई रास भोग में ,
अन्त समय पछताई ।
भजन करू भाई रे भाई ।
कि आरे भाई राम नाम………
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र