प्रभु श्रीराम ऐसे कृपालु हैं कि शरण में आए हुए को शरण में तो रख हीं लेते हैं उसे सुख सम्पदा भी देते हैं और उसकी रक्षा भी करते हैं। वैसे तो अनेक उदाहरण हैं प्रभु श्रीराम की शरणागतवत्सलता का पर मैने अपनी इस रचना में एक उदाहरण विभीषण जी का लिया है। विभीषण जी जब प्रभु की शरण में गए तो प्रभु श्रीराम ने उन्हें हृदय से लगा लिया और तुरंत समुद्र का जल मँगा कर उनका राज्याभिषेक कर दिया (युद्ध समाप्ति के बाद विभीषण जी का राज्याभिषेक तो एक औपचारिकता मात्र थी) और उन्हें लंका का राजा बना दिया। शिव जी को अनेक बार अपना शीष चढ़ाने के बाद रावण ने जो सम्पदा पाई थी वही सम्पदा प्रभु श्रीराम ने विभीषण जी को संकोच के साथ दिया। प्रभु को संकोच हो रहा है कि मैने विभीषण को कुछ नहीं दिया। प्रभु अपने शरणागत की रक्षा कैसे करते हैं देखिए यह उदाहरण… युद्ध क्षेत्र में जब रावण ने विभीषण जी को देखा तो उन पर ब्रह्मास्त्र चला दिया। प्रभु श्रीराम ने विभीषण जी को तुरंत खींच कर अपने पीछे कर लिया और ब्रह्मास्त्र के वार को स्वयं झेल गए। ऐसे हैं कृपालु प्रभु श्रीराम जी। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :——-
ऐसो हैं कृपालु रघुराई ।
शरणागत को शरण लगाई ।।
ऐसो हैं कृपालु………..
आए शरण विभीषण प्रभु की ,
प्रभु ने हृदय लगाई ।
किन्हीं तिलक विभीषण का प्रभु ,
लंकापती बनाई ।
ऐसो हैं कृपालु………..
जेहि सम्पदा दशानन पाई ,
अगणित शीष चढ़ाई ।
सोइ सम्पदा विभीषण को प्रभु ,
दिन्हीं अति सकुचाई ।
ऐसो हैं कृपालु………..
युद्ध क्षेत्र में देखि विभीषण ,
रावण ने ब्रह्मास्त्र चलाई ।
तुरत विभीषण पीछे किन्हीं ,
वार सहे रघुराई ।
ऐसो हैं कृपालु…………
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र