प्रभु श्रीराम गंगा पार उतरना चाह रहे हैं पर केंवट नाव नहीं ला रहा है, कहता है कि हे प्रभु जब तक चरण नहीं धुलाइएगा तब तक नाव पर नहीं चढ़ाऊँगा। कहता है कि हे नाथ मैं आपसे उतराई भी नहीं लूँगा।
केवट की अनन्य भक्ति पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:——
आजा मोरे राम जी चरनियाँ पखारौं ।
तोहरे चरन में कौनो बूटी लगल है,
छुअत चरनियाँ शिला नारी बनत है,
कठवा कि नैया मोरे केहि बिधि उबारौं ।
आजा मोरे राम जी…………
जबले चरन ना धुलैबो प्रभू जी,
नैया पर हम ना चढ़ैबो प्रभू जी,
दशरथ शपथ मोहे राम को गुहारौं ।
आजा मोरे राम जी…………
चरन पखारि पितर हम तरबो,
चरणोदक प्रभु पान हम करबो,
नाहिं लेबो उतरैया प्रभु जी पार हम उतारौं ।
आजा मोरे राम जी…………
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र