एक दासी की करुण पुकार मेरी इस रचना के माध्यम से:—-
तेरी दासी पड़ी है तेरे द्वार,
सँवरिया फेरो नजरिया ।
मैं तो प्रभू तेरी शरन में आई,
चरणों में प्रभु शीष झुकाई,
राखो तु अपनी शरनियाँ ।
अब फेरो नजरिया ।
तेरी दासी पड़ी है तेरे द्वार,
सँवरिया फेरो नजरिया ।
कितने अधम तेरी शरन में आए,
तिन्हके प्रभू अपराध भुलाए,
भेजे बैकुंठ नगरिया ।
अब फेरो नजरिया ।
तेरी दासी पड़ी है तेरे द्वार,
सँवरिया फेरो नजरिया ।
शबरी अहिल्या और गणिका को तारे,
मो सम अधम नारि कौन उद्धारे,
हमको भी तारो सँवरिया,
अब फेरो नजरिया ।
तेरी दासी पड़ी है तेरे द्वार,
सँवरिया फेरो नजरिया ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र