जब जब होय धरम के हानी…….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

जब जब धर्म की हानी होती है और पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है तब तब प्रभु विभिन्न शरीर धारण कर अवतार लेते हैं और दुष्टों का विनाश कर साधुओं की रक्षा करते हैं और पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करते हैं।
भोजपुरी में दशावतार वर्णन मेरी इस रचना के माध्यम से :—–

जब जब होय धरम के हानी,
जब जब पृथ्वी अकुलानी,
प्रभु अवतार लिहिंला,
प्रभु जी धरि के भिन भिन रुपवा,
धरति के भार हरींला ।
प्रभु जी मत्स्य रूप जब धइनी,
सृष्टी के बीज बचवनी ।
प्रभु जी कछप रूप जब धइनी,
मंदराचल के भार उठवनी ।
प्रभु बाराह रूप में पृथ्वी के उद्धार करींला ।
प्रभु जी धरि के भिन भिन रुपवा…….
प्रभु नरसिंह रूप जब धइनी,
हरनाकुश के संहरनी ।
प्रभु जी परम भक्त प्रह्लाद के उद्धार करींला ।
प्रभु जी धरि के भिन भिन रुपवा…….
प्रभु जी बामन रूप जब धइनी,
राजा बलि जी के हरि लिहलीं ।
प्रभु जी तीन डेग में पूरे ब्रह्माण्ड नापींला ।
प्रभु जी धरि के भिन भिन रुपवा…….
प्रभु जी परशुराम रुप धइनी,
दुष्ट छत्रिन्ह के संहरनी ।
प्रभु जी सहसबाहु के मारि के,
जश उजियार करींला ।
प्रभु जी धरि के भिन भिन रुपवा…….
प्रभु जी राम रूप जब धइनी,
रावण कुंभकरण के मरनी ।
प्रभु जी कृष्ण रूप में कंस के,
संहार करींला ।
प्रभु जी धरि के भिन भिन रुपवा…….
प्रभु जी बुद्ध रूप जब धइनी,
अहिंसा के पाठ पढ़वनी ।
प्रभु जी कल्कि रूप में कलियुग के,
उद्धार करींला ।
प्रभु जी धरि के भिन भिन रुपवा………

 

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र