जिस प्रभु के नाम स्मर्ण मात्र से कितने पापी भवसागर पार उतर गए, जिनका नाम हीं सेतु है वही प्रभु केवँट से पार उतारने के लिये निहोरा कर रहे हैं । वही प्रभु मार्ग देने के लिये समुद्र से विनती कर रहे हैं । वही प्रभु बन्दर भालू से सेतु बनाने के लिये अनुरोध कर रहे हैँ । ऐसा कर के प्रभु ने अपने सेवक जनो को सम्मान दिया है । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है भोजपुरी में मेरी ये रचना :—–
जिनके नाम भवसागर सेतू , पार उतरनी जी । उहे प्रभु पार उतरनी जी । लेत नाम जिनके तरि गैलें , गणिका गिद्ध अजामिल , उहे प्रभू जी करि के निहोरा , नाव मंगवनी जी । उहे प्रभु पार उतरनी जी । लेत नाम जिनके तरि गैलें , शबरी अहिल्या कसाई , उहे प्रभू जी करि के निहोरा , सेतु बँधवनी जी । उहे प्रभु पार उतरनी जी ।। लेत नाम जिनके तरि गैलें , सुर नर मुनिजन ज्ञानी , सेवक जन के करि के निहोरा , मान बढ़वनी जी । उहे प्रभु पार उतरनी जी ।।