DHARM शोभा बरनी न जाई रघुबीर सखी ….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र admin December 29, 2024 प्रभु श्री राम राजसिंहासन पर विराजमान हैं। सखियाँ उनकी शोभा का वर्णन कर रही हैं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :——- शोभा बरनी न जाई रघुबीर सखी । नील कमल सम श्यामल गाता , सरसिज लोचन भृकुटि विलासा , चारु नासिका कीर सखी । शोभा बरनी न जाई……….. कुंचित कच जनु मधुप विराजत , कोटिश कामदेव छवि राजत , अंग अंगनि रचि रुचिर सखी । शोभा बरनी न जाई……….. पुष्ट कंध उर भुजा विशाला , भाल तिलक सुन्दर मनि माला , त्रिवली नाभि गँभीर सखी । शोभा बरनी न जाई……….. पीत बसन उपबीत सुहावन , धनु शारंग कंध अति पावन , कटि तट कसे तुनीर सखी । शोभा बरनी न जाई……….. बिधि शंकर नित देखन आवत , बरनत शोभा पार न पावत , निगम शारदा शेष सखी । शोभा बरनी न जाई……….. गात = शरीर , सरसिज = कमल , कीर = तोता , कुंचित कच = काले घुँघराले बाल , मधुप = भँवरा , त्रिवली = उदर पर बनी तीन रेखाएँ , उपबीत = जनेऊ , तुनीर = तरकस , निगम = वेद रचनाकार : ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र