प्रभु श्रीराम का प्राकट्य हुआ है, अयोध्या में उत्सव मनाया जा रहा है। तीनों माताएँ बालक राम की बार बार बलैया ले रहीं हैं। राजा दशरथ और तीनों रानियाँ अन्न, धन, वस्त्र, सुवर्ण लुटा रहीं हैं। देवता, मनुष्य, मुनि सभी प्रभु श्रीराम की स्तुति कर रहे हैं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:——
प्रगट भए रघुरैया, अवध में बाजे बधैया । रानी कौशल्या सुमित्रा कैकेई, घरि घरि लेत बलैया । अवध में बाजे बधैया । प्रगट भए रघुरैया……… राजा लुटावत हैं अन धन सोनवाँ, रानी लुटावैं धेनु गैया । अवध में बाजे बधैया । प्रगट भए रघुरैया……… सुर नर मुनिजन स्तुति करहीं, नाचत ता ता थैया । अवध में बाजे बधैया । प्रगट भए रघुरैया………