प्रभु श्रीराम वन में चले गए हैं। माता कौशल्या विरह में ब्याकुल हो कर बिलाप कर रही हैं। माता कौशल्या की विरह वेदना पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :——
राम बिन गोदिया सूनी री सखिया ।
जब से गए राम अँखियो न निन्दिया ,
दिन को चैन नाहीं बीतै न रतिया ,
राम बिन गलिया सूनी री सखिया ।
राम बिन गोदिया……………
सीता बिना मोरी सूनी रसोइया ,
नीको न लागै घर द्वार महलिया ,
लखन बिन अँगना सूनी री सखिया ।
राम बिन गोदिया……………
चौदह बरस कैसे बितिहैं री सखिया ,
एक पल बीतै कलप सम री सखिया ,
सुवन बिन रहिया सूनी री सखिया ।
राम बिन गोदिया……………….