कागभुषुण्डी जी गरूड़ जी से भक्ति के विषय में वर्णन करते हुए कहते हैं कि हे गरूड़ जी भक्ति के बिना मनुष्य का शरीर शव के समान है। जिसके पास भक्ति होती है उसके पास माया नहीं फटकती है क्योंकि भक्ति और माया दोनों स्त्री संज्ञक हैं और नारी नारी को नहीं मोहती। नारी का आकर्षण तो पुरुष की ओर होता है। ज्ञान पुरुष वाचक है इसलिए माया ज्ञान की ओर आकर्षित होती है, इसीलिए ज्ञानी मुनि ज्ञान के साथ भक्ति को भी अपनाये रहते हैं ताकि माया उनके पास नहीं फटके। हे गरूड़ जी प्रभु श्रीराम जी को अपने भक्त बहुत प्रिय होते हैं। जिस प्रकार शरीर की छाया साथ साथ चलती है उसी प्रकार भक्त आगे आगे चलते हैं और प्रभु श्रीराम जी उनके पीछे पीछे चलते हैं, इसलिए हे गरूड़ जी प्रभु की भक्ति और उनका भजन करना चाहिए। प्रभु कृपा से रचित मेरी ये रचना दोहा के रूप में:——
रावण बिना श्री राम की, कथा अधूरी है। भक्त बिना भगवान की, कथा न पूरी है।।
सीता बिना श्रीराम ज्यों, स्वयं अधूरे हैं। भक्ति बिना इंसान भी, कभी न पूरे हैं।।
शक्ति बिना शिव शव भए, राधा बिन घनश्याम। भक्ति बिना यह तन भी, बनता यमपुर धाम।।
आगे आगे भगत चले, पीछे श्री रघुबीर। ज्यों तन की छाया चले, संग संग धरि धीर।।
इसीलिए बिनती करौं, सुन लो हे मतिधीर। भगति करो भगवान की, भजलो श्री रघुबीर।।