प्रभु श्रीराम को जो भी प्रेम से भजा प्रभु ने सबको भवसागर पार उतारा। शबरी, केंवट, अहिल्या, कोल, भील, किरात, गणिका, गिद्ध, अजामिल सभी प्रभु का नाम लेकर भवबंधन से छूट गए। प्रभु श्रीराम को जो बैर भाव से भी स्मरण किया उसे भी प्रभु ने अपने परमधाम को भेज दिया। प्रभु को जिस नाते भजो प्रभु उसी नाते उसे अपनाते हैं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–
राम जी सबको पार लगाते ।
शबरी केंवट पतित अहिल्या,
सबको पार उतारे ।
कितने नीच अधम को तारे,
नाम लेत चलि आते ।
राम जी सबको पार लगाते ।
राम जी सबको………..
गणिका गिद्ध अजामिल तारे,
कोल किरात उधारे ।
बैर भाव से भी जो भजता,
प्रभु निज धाम पठाते ।
राम जी सबको पार लगाते ।
राम जी सबको………..
ब्रह्मेश्वर तव दास तु स्वामी,
तेहि नाते तोहे ध्याते ।
जाकी जैसी होत भावना,
तेहि नाते अपनाते ।
राम जी सबको पार लगाते ।
राम जी सबको………
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र