महाराज दशरथ को ऐसा विश्वास था कि सुमंत्र जी राम को वन से लौटा कर ले आएगें पर जब सुमंत्र जी खाली हाथ लौटे तो राजा व्याकुल हो उठे। हा राम! हा राम! कह कर विलाप करने लगे। कहने लगे कि हे सुमंत्र! राम कहाँ हैं, सीता कहाँ हैं, लक्ष्मण कहाँ हैं? राजा दशरथ को श्रवण कुमार के माता पिता का दिया हुआ शाप स्मरण हो आया, कहने लगे कि विधि का विधान टल नहीं सकता, आज उन तपस्वी माता पिता का दिया हुआ शाप के फलित होने का समय आ गया। इस प्रकार राजा राम राम रटते हुए अपना प्राण त्याग दिये। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:——
बताओ हे सुमंत्र जी! राम कहाँ हैं ? कहाँ मोरी सीता लखन कहाँ हैं ? बताओ हे सुमंत्र जी……….. छोड़ि आए बन में कि लेइ आए संगवाँ, राम राम रटत कटत रात दिनवाँ, राम कहाँ हैं ? बताओ हे सुमंत्र जी……….. राम के दरश लागि ब्याकुल हैं प्रणवाँ, लेइ चलो हमको भी राम लगि बनवाँ, राम कहाँ हैं ? बताओ हे सुमंत्र जी……….. टालहीं न टलत बिधी के बिधनवाँ, राम राम रटत तजे राउ प्रणवाँ, राम कहाँ हैं ? बताओ हे सुमंत्र जी………..