रे मन! तू क्यों नहीं राम का नाम लेता है ? जिस नाम को लेकर गणिका, गिद्ध, अजामिल आदि अधम तर गए उसी नाम को तू क्यों विसार दिए हो ? प्रभु का नाम राम अत्यंत पावन है जिसे स्मरण करते ही मनुष्य भवसागर पार उतर जाता है। रे मन! तू भी इस राम नाम का स्मरण कर भवसागर पार उत्तर जा। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:——
मन रे तु काहे न राम कहे ।
चार दिनन की ये जिन्दगानी,
काहे को मोह करे ।
ममता मोह में भूलि रहा है,
हरि नहीं दीखि परे ।
तु काहे न राम कहे ।
मन रे तु काहे न………
राम नाम अति पावन जग में,
सुमिरत भवहिं तरे ।
गणिका गिद्ध अजामिल तरि गए,
लेत नाम छन रे ।
तु काहे न राम कहे ।
मन रे तु काहे न………