मनुष्य एक पथिक है जो इस ममता मोह रुपी संसार में भटकते फिरता है। बड़े भाग्य से मनुष्य शरीर मिलता है इसलिए इसका सदुपयोग कर लो। चार दिनों की तो जिंदगी है सब कपट चतुराई छोड़ कर प्रभु का भजन कर लो। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :———
बटोही जीवन के दिन चार ।
यह संसार कागज की पुड़िया ,
उड़ जाय बहत बयार ।
बटोही जीवन के………..
ममता मोह में पड़ा है बन्दे ,
बंधन पड़े हजार ।
बटोही जीवन के………..
हरि का भजन न भायो तोको ,
करे कपट ब्यवहार ।
बटोही जीवन के………..
बड़े भाग मानुष तन पाया ,
करले बेड़ा पार ।
बटोही जीवन के………..
छोड़ि कपट चतुराई रे बन्दे ,
भजले नाम उदार ।
बटोही जीवन के………..
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र